‘गरिमा सिंह की पुस्तक ‘चाक मे माटी सा मन’ का हुआ विमोचन,स्त्रीवाद का अर्थ पुरुष का विरोध नहीं है: रघुवंशमणि
अयोध्या । जनवादी लेखक संघ, फैजाबाद के तत्वावधान में शानेअवध होटल में संगठन की सदस्य युवा कवयित्री गरिमा सिंह के कविता-संग्रह ‘चाक पे माटी सा मन’ का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। विमोचन कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार, केदार सम्मान, रघुपति सहाय सम्मान और रूस के पुश्किन सम्मान से सम्मानित देश के वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने कहा कि गरिमा सिंह का यह संग्रह पूरी परिपक्वता और लेखकीय ज़िम्मेदारी से लिखा गया है।
उन्होंने कहा कि पहले संग्रह का कच्चापन ही उसकी खासियत होती है। संग्रह की प्रेम कविताओं पर ध्यानाकर्षण करते हुए उन्होंने कहा कि जो प्रेम कविताएँ नहीं लिखता वह कवि नहीं हो सकता, रोमानियत जीवन का व्यापक भाव है। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में उन्होंने गरिमा जी की कविताओं में उपस्थित स्थानीयता की प्रशंसा की और कहा कि गरिमा जी की कविताओं के शब्द उनके समाज और समय से आते हैं।
रामविलास शर्मा सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ आलोचक रघुवंशमणि ने कविताओं में रेखांकित स्त्री अस्मिता के प्रश्न को लक्षित करते हुए कहा कि स्त्रीवाद का अर्थ पुरुष का विरोध नहीं है बल्कि अपने लिए समान अधिकारों की मांग है। उन्होंने स्पष्ट किया कि गरिमा सिंह के संग्रह की प्रतिनिधि कविता ‘चाक पे माटी सा मन’ में जिस चाक का संदर्भ है वह स्त्री के विरोध में सदियों से चली आ रही सामाजिक विषमताओं का प्रतीक है।
जिसपर स्त्री का मन कच्ची मिट्टी की तरह चढ़ाया जाता रहा है। रघुवंशमणि जी ने कहा कि आज पितृसत्ता का स्वरूप बदल गया है और स्त्री के साथ हिंसा की घटनाएँ बढ़ गयी हैं। इस पितृसत्ता के प्रति स्त्री अस्मिता की अभिव्यक्ति ही गरिमा सिंह की कविताओं का अर्थात् है। अपनी छोटी कविताओं में गरिमा रूपकों को पकड़ती हैं और उनको विस्तार देते हुए पूर्णता का निष्कर्ष प्रदान करती हैं।
उनकी प्रेम कविताएँ प्रश्न उठाती हैं कि क्या एक स्त्री के जीवन में प्रेम की पूर्णता सम्भव है। लखनऊ से आए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और जनवादी लेखक संघ, उ.प्र. के सचिव प्रो. नलिन रंजन सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस संग्रह में चाक और माटी जैसे प्रतीक काव्यात्मक बुनावट को स्पष्ट करते हैं। गरिमा जी की कविताएँ स्त्री विमर्श के दृष्टिकोण से पुरुषसत्ता के घालमेल को पहचानने का सफल प्रयास करती हैं।
उन्होंने कहा कि पितृसत्ता ने समाज के एक बड़े उत्पादक हिस्से को हाशिए पर डाल दिया है, जिसमें स्त्री भी सम्मिलित है। गरिमा जी की कविताओं में नदी किनारों को जोड़़ती है, वह हाशियों के समन्वय का एक महत्वपूर्ण बिम्ब है। उन्होंने कहा कि संग्रह में जो प्रेम कविताएँ हैं वे अधिकतर प्यार को खोने से जुड़ी हुई हैं, उनमें प्रेम की टीस स्पष्ट दिखाई देती है। नलिन जी के अनुसार संग्रह में विषयों की व्यापकता भी है।
जहां एक ओर कवयित्री के प्रशासनिक जीवन के अनुभव हैं तो दूसरी ओर व्यवस्था के विद्रूप का विरोध भी कविताओं में है। अपनी अस्मिता की पहचान के साथ दैनंदिन जीवन से मुक्ति एक छटपटाहट भी इन कविताओं में है। इसके साथ ही मिथकों और आख्यानों का प्रयोग करती हुए ये कविताएँ साम्प्रदायिक प्रश्नों पर भी दृष्टिपात करती हैं। कार्यक्रम का संचालन कर रहे जनवादी लेखक संघ, फ़ैज़ाबाद के सचिव डॉ. विशाल श्रीवास्तव ने कहा कि एक सम्भावनाशील युवा कवयित्राी के रूप में गरिमा सिंह की कविताएँ आश्वस्ति पैदा करती हैं।
समाज की विषमताओं, जटिल यथार्थ और स्त्री-अस्मिता जैसे सन्दर्भों के बीच यदि आप गहराई से देखें तो ये कविताएँ एक बेहद सहज और सरल स्त्री मन की कविताएँ हैं। यह एक ऐसी स्त्री का मन है, जिसमें कहीं बनावट नहीं है और उसके भीतर संसार में प्रेम जैसे भाव को लेकर एक उम्मीद कायम है। इन कविताओं के माध्यम से भी वे दुनिया की जटिलताओं की छवियों के बरअक़्स आशा का एक संसार रचती हैं और यही उनकी कविता की स्वाभाविकता है। इस अवसर पर अपने वक्तव्य में वरिष्ठ कवयित्री पूनम सूद ने कहा कि कविताओं में जो कहा जाता है उससे अधिक छूट जाता है। कविता में स्त्री विमर्श के आने से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
कवयित्री ऊष्मा सजल ने संग्रह की कविताओं के भावनात्मक पक्ष पर अपनी बात रखते हुए कहा कि इन कविताआंे में सहजता के साथ आत्माभिव्यक्ति का प्रकाशन किया गया है। महशूर शायर मुज़म्मिल फिदा ने अपने वक्तव्य में कविताओं की भाषा पर बात करते हुए कहा कि इन कविताओं में उर्दू के शब्द जिस सहजता के साथ आए हैं, वह काबिले तारीफ है।
विमोचन के अवसर पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कवयित्री गरिमा सिंह ने अपनी कविताओं की रचना-प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि यह मेरा पहला संग्रह है, जिसमें मैंने समाज के विविध पक्षों पर अपनी अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। उन्होंने कहा कि एक स्त्री होने के नाते उसकी अस्मिता के प्रश्न और विडम्बनाएँ इन कविताओं का प्रमुख कथ्य हैं लेकिन समाज का हर वर्ग चाहे वह किसान हो या अन्य शोषित वर्ग, इन कविताओं में कहीं न कहीं मौजूद है। इस अवसर पर उन्होंने अपनी कई कविताओं का पाठ किया, जिनमें प्रमुखतः ‘चाक पे माटी सा मन’, ‘मुकम्मल शाम’, ‘नदी’, ‘फासला प्यार का’, ‘देहरी’, ‘ब्लैक होल’, ‘माटी सी लड़कियाँ’, ‘कंदील’, ‘सपनों की डोर’ शामिल रहीं।
उनकी काव्यपंक्ति ‘ उसकी ग़रीबी गरवीली है, बदरंग होकर भी, व्यवस्था के कठोर सीने में, चुभने भर को नुकीली है’ काफी सराही गयी। इससे पूर्व संगठन के सदस्य सत्यभान सिंह जनवादी ने आमंत्रित साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं गणमान्य नागरिकों का स्वागत किया और अपने वक्तव्य में इस कविता-संग्रह को एक महत्वपूर्ण कृति बताया। उन्होंने कहा कि एक स्त्री के रूप में गरिमा जी ने समाज को जिस तरह देखा है और उसकी व्याख्या की है, वह अभूतपूर्व है। कार्यक्रम के अन्त में धन्यवाद ज्ञापन श्री बृजेश मौर्य द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में क्रांतिकारियों के चित्र भेंट कर अतिथियों का स्वागत संगठन के सदस्यों धीरज द्विवेदी, अखिलेश सिंह, शिवानी, रेनू तिवारी,साधना सिंह एवं बालकिशन द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार सुश्री सुमन गुप्ता, वरिष्ठ साहित्यकार आरडी आनंद, आशाराम जागरथ, डॉ. परेश पाण्डेय, शेर बहादुर शेर, एसएन बागी, अतीक अहमद, आकाश गुप्ता, विन्ध्यमणि त्रिपाठी, लेखिका स्वदेश रश्मि, राजीव श्रीवास्तव, आर.एन. कबीर, बालकिशन, रामदास यादव, साधना सिंह, गरिमा सिंह, अनामिका, दीप्ति, आदिला, युवा लेखिका सुनीता पाठक, अधिवक्ता व मेयर प्रत्याशी कंचन दुबे, मो. सलीम, मो. सगीर, सैय्यद सुबहानी, कीर्ति यादव सहित शहर के विभिन्न प्रगतिशील साहित्यकार, बुद्धिजीवी एवं पत्रकार सम्मिलित हुए।