नश्वर शरीर को सांसारिक विषय वासनाओं में न लगाकर ईश्वर के भजन आराधन में लगाना चाहिए यही मुक्ति का मार्ग है
रुदौली (अयोध्या) । गोधूलि बेला में प्रेमा लाप कभी नहीं करना चाहिए इससे दुर्गति ही होती है। महाराज दशरथ ने गोधूलि वेला में जब कैकेई के साथ प्रेमालाप किया तो सब बिगड़ गया ।इसी तरह महर्षि कश्यप ऋषि की पत्नी दिती ने जब महर्षि के साथ सायं कालीन बेला में प्रेमालाप किया तो हिरण्याक्ष और हिरण्या कश्यप नाम के दो दुर्दांत दस्यु पुत्र पैदा हुए।
यह उद्गार संगीत मई भक्ति धारा को प्रवाहित करते हुए श्री मद भागवत कथा के तृतीय दिवस पर आदर्श रामलीला समिति भैरव धाम के रंग मंच पर सीता राम कसौधन द्वारा आयोजित कथा में कथा व्यास पंडित प्रकाश चंद पाण्डेय विद्यार्थी जी ने ओज पूर्ण वाणी में कहा की सुखदेव जी महाराज ने राजा परीक्षित जी को श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए भगवान विष्णु के वराह अवतार का प्रसंग बताते हुए कहा कि महर्षि कश्यप की पत्नी दिती से हिरण्याछ व हिरण्यकश्यप नाम के दो राक्षस पुत्र उत्पन्न हुए ।
महर्षि की पत्नी दिती ने केवल इतनी गलती कर दी कि सायं कालीन बेला में महर्षि कश्यप जी के साथ उनकी इच्छा के विरुद्ध प्रेमालाप किया जिससे परिणाम इतना भयानक हुआ कि दिती व कश्यप ऋषि के दोनो पुत्रों के आतंक से पूरी पृथ्वी त्राह त्राह करने लगी भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया अपने भाई के वध से आहत हिरण्या कश्यप ने भगवान विष्णु से बदला लेने के लिए सोचा लेकिन जब शत्रु प्रबल होता है तो बदला लेने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए तुरंत उसे टक्कर लेने में हानि भी हो सकती है ।
यही सोच कर हिरण्या कश्यप घोर तपस्या में लीन हो । उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने द्वारा वरदान मांगने को कहा तब उसने अमरत्व का वरदान मांगा लेकिन ब्रह्मा जी ने यह वरदान देने में असमर्थता व्यक्त किया तो हिरण्या कश्यप ने कहा की न दिन में मरे ना रात में मरे न दानव से न मानव से न पशु से ब्रह्मा जी एवमस्तु कहा।वरदान पाकर हिरण्या कश्यप घोर अत्याचार करने लगा उसके आतंक से पूरी धरा कांप उठी ।
हिरण्या कश्यप का पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था हिरण्या कश्यप स्वयं को भगवान मानता था उसने भक्त प्राहलाद के मारने के लिए बहुत उपाय किया लेकिन वह सफल नहीं हुआ अंत में उसकी बहन होलिका जिसे अग्नि में ना जलने का वरदान प्राप्त था प्रहलाद को लेकर वह अग्नि में बैठ गई हरि भक्त प्राहलाद तो बच गया लेकिन होलिका विद्वेष की अग्नि में जलकर खाक हो गई ।
इस से उसका हिरण्या कश्यप का अत्याचार बढ़ता गया एक दिन उसने हरि भक्त पहलाद को खंबे में बंध कर मारना चाहा और कहा कि मैं देखता हूं कि अब तुम्हें कौन बचाता है तुम्हारा ईश्वर कहां है यदि इस खंबे हो तो सामने आए उसी समय घोर गर्जना के साथ के भगवान श्री हरि विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर हिरण्या कश्यप का वध किया और पृथ्वी को राक्षसों के आतंक से मुक्त किया । कथा व्यास जी ने कहा कि हिरण्यकश्यप एक महान पिता का संतान था लेकिन अपनी माता के संस्कार के कारण वह राक्षस हुआ ।
राम ,रावण ,कृष्ण, कंस की एक ही राशि थी लेकिन केवल संस्कार का अंतर था राशि का फल नहीं केवल कर्म का अंतर ही देव दानव को एक कभी एक साथ नहीं कर पाए । इसी प्रकार से हम सभी लोगों को अच्छे आचरण करना चाहिए ।एक उद्धरण में कथा व्यास जी ने कहा कि अंगुलिमाल डाकू ने भगवान बुद्ध को सैकड़ों गालियां दी जितनी भी लगातार वह गालियां देता रहा भगवान बुद्ध ने कहा कि मैं एक भी गाली नहीं स्वीकार कर रहा हूं मैंने नहीं ली मैंने वापस कर दी और अब यह समझने की बात है कि जब भगवान बुद्ध ने सारे अपशब्द वापस कर दिया तो वह वापस फिर अंगुलिमाल के पास चला गया ।
इससे उसका हृदय परिवर्तन हुआ और अंगुलिमाल का जीवन बदल कर एक महान ऋषि बन गया जिसने एक महान ग्रंथ की रचना की ।कथा व्यास जी ने कहा कि माता-पिता का जैसा आचरण होगा गर्भ काल से ही जैसा संस्कार होगा वैसे ही संतान का जन्म होगा। माता निर्माता भवति । इसलिए हम अपने बच्चों को संस्कारवान बनाने के उनको अच्छी शिक्षा देनी चाहिए जिससे वह समाज में अपने कुल परिवार का नाम रोशन करें । श्रीमद् भागवत कथा के मुख्य यजमान सीताराम कसौधन ने सपत्नीक भागवत भगवान की आरती की। आरती में नगर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे कार्यक्रम में संतोष कुमार पवन कुमार रमेश कुमार नेम चंदन भी उपस्थित रहे।