बीएचयू में ‘‘काश्मीर शैव दर्शन : शास्त्रपक्ष एवं लोकपक्ष’’ का हुवा व्याख्यान
बीएचयू : धर्मागम विभागए संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकायए वैदिक विज्ञान केन्द्रए बीएचयू एवं काश्मीर शैव संस्थानए जम्मू एवं काश्मीर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन वैदिक विज्ञान केन्द्र के सभागार में सम्पूर्ति सत्र का आरंभ वैदिक एवं आगमिक मंगलाचरण के साथ हुआ। उक्त सत्र का संचालन प्रो0 ब्रजभूषण ओझाए व्याकरण विभाग तथा अध्यक्षता प्रो0 अरूण कुमार सिंहए कुलसचिवए बीएचयू ने किया। स्वागत वक्तव्य प्रो0 उपेन्द्र कुमार त्रिपाठीए समन्वयकए वैदिक विज्ञान केन्द्र ने दिया। सान्निध्य पूज्य जगद्गुरू चन्द्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी जीए जंगमवाड़ी मठए वाराणसी के द्वारा ऑनलाईन माध्यम से आशीर्वचन प्रदान किया गया।
काश्मीर शैव संस्थान के श्री विजय कुमार कॉल ने दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्र्रीय सम्मेलन से संबंधित अपने अनुभवों को साझा करते हुए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में शैव पीठ की स्थापना की बात कही। मुख्यातिथि प्रो0 नरेन्द्रनाथ पाण्डेयए पूर्व कुलपतिए सम्पूर्णानन्द सं0 विश्वविद्यालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि सभी दर्शनों का मूल मोक्ष प्राप्त करना है और उसके लिए सही उपासना पद्धति और गुरु के प्रति श्रद्धा की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि गुरु एवं ईश्वर में कोई भेद नहीं है। साधना वही है जिसमें इच्छाएं समाप्त हो जायें।
विशिष्ट अतिथि प्रो0 हृदयरंजन शर्माए मानोन्नत आचार्यए वेद विभाग ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सम्पूर्ण सृष्टि शिवमय है तथा वेदों से लेकर आगमों तक के सम्पूर्ण वैदिक वाङ्मय में परमतत्व को जानना अथवा अनुभूत करना ही परमलक्ष्य है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो0 अरुण कुमार सिंहए कुलसचिवए बीएचयू ने अपने जीवन संस्मरण साझा करते हुए संस्कृत शास्त्रों को पूर्णरूपेण वैज्ञानिक बताया। मेघदूत का उद्धरण देते हुए आश्रम शब्द के अन्तर्गत पर्यावरण संबंधी व्यवस्था का दिग्दर्शन कराया। इसके साथ ही शैव पीठ की स्थापना से संबंधित सुझाव पर अपनी सहमति प्रकट करते हुए पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो0 कमलेश झाए धर्मागम विभागाध्यक्ष एवं संकायप्रमुख ने दिया।
संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय शैक्षणिक सत्र की अध्यक्षता श्री परमपूज्य स्वामीश्री केशवप्रिय दास जीए श्रीस्वामी नारायण गुरुकुलसंस्थानएराजकोट ने किया। मुख्य वक्ता आचार्य स्वामी श्रीस्वरुपदास जी महाराजए श्रीस्वामीनारायण गुरुकुलसंस्थानए राजकोट तथा अन्यवक्तागण डॉ0 पवन कुमारए एसोसिएट प्रो0ए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालयए अगरतलाए स्वामी श्रीशुकमुनिदास महाराजजीए श्री स्वामीनारायण गुरुकुलसंस्थानए राजकोट रहे। इस सत्र का संचालन प्रो0 प्रद्युम्न शाह सिंह ने किया।
इस सत्र के मुख्यवक्ता स्वामी माधवप्रियदास जी महाराज ;अहमदाबादद्ध ने ऑनलाईन अपने उद्बोधन में कहा कि आगम और निगम एक दूसरे के परिपूरक है क्योंकि आगम निर्बोध निगम को सुगम बनाता है। वे काश्मीर शैवागम के संरक्षण के लिए कश्मीर पंडितों के निष्ठा की सराहना करते हुए कहा कि मुझे आज गौरव है कि काश्मीर ने शैवागम को संजाये रखा। मैं प्रणाम करता हूँ उन काश्मीरी पंडितों का जो इतने आक्रान्ताओं के बावजूद शैवागम को सुरक्षित रखा। काशी में पं0 रामेश्वर झा जी के प्रयास से शैवागम का प्रसार कैसे हुआ इस पर भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने यह भी कहा कि पं0 रामेश्वर झा केवल शैव दर्शन के विद्वान ही नहीं थे बल्कि वे शैव दर्शन के सिद्ध भी रहे। शिवतत्व का सात्विक बोध व अनुभव शैवागम है।
प्रो0 कमलेश झाए धर्मागम विभागाध्यक्ष ने अपने भाषण में कहा कि वह पं0 रामेश्वर झा जी के सान्निध्य में रहकर शास्त्रों का अध्ययन किया है तथा उनकी पवित्र स्मृतियों के बारे में विस्तार से चर्चा की। डॉ0 पवन कुमार ने अपने ऑनलाईन भाषण में वर्तमानकालीन काशी में शैवागम परम्परा का विस्तार एवं पं0 रामेश्वर झा जी के अवदान को दर्शाया। स्वामी शुकमुनि दास जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि काशी में व्याप्त मंदिरों तथा आध्यात्मिक तरंगों का अनुभवए पूजा.पद्धतियाँए कर्मयोगए भक्तियोग इत्यादि अत्यन्त प्रेरणादायी है।
स्वामी स्वरुपदास जी महाराज अपने हृदयस्पर्शी भाषण में कहा कि जिसे लोग चुनते हैं वे संसद में बैठते हैंए परन्तु जिसे परमात्मा चुनते हैं वह ऐसे कार्यक्रम में बैठते हैं। गुर्जर भाषा में प्रचलित ष्एष् और ष्आष् . दोनों वर्णों के गूढ़ अर्थों का प्रतिपादन किये। ष्एष् का तात्पर्य है वह और ष्आष् का तात्पर्य परामर्श है। मनुष्य का परम लक्ष्य संसार चक्र से जीवन को मुक्त करना है। मुक्ति क्रा स्वरूप और मुक्ति का उपाय दोनों अलग अलग विषय है। भक्ति मुक्ति का प्रधान साधन है। भक्ति का पर्याय ज्ञान है। उन्होंने आस्तिकए नास्तिक व भक्तों में अंतर को भी बतलाया। शोध छात्र श्रीकविराज ने अपने शोध पत्र ष्ज्ञानम् मोक्षैककारणम्ष् पर वक्तव्य दिया तथा श्री अम्बिकेश मिश्र ने ष्अभिनवगुप्त पाद के स्तोत्रों का संक्षिप्त परिचयष् शीर्षक निबंध का वाचन किये।
इस संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र की अध्यक्षता प्रो0 पतंजलि मिश्र ने किया तथा मुख्यवक्ता श्री मार्क डिस्कोवास्की ने द्वादस शैवागम में द्वादस काली की रहस्यमयी व तात्विक व्याख्या दिये। उन्होंने श्रीक्रमशास्त्र और सम्वित देवी पर विस्तार से चर्चा की।
प्रो0 सरोज गुप्ताए हिन्दी विभागए सागर ने अपने उद्बोधन में कहा कि सत् चित् आनन्द का बाह्य प्राकट्य ही शिव का विश्वरुपता है। वे अपने उद्बोधन में अनुत्तरतत्व की व्याख्या करते हुए कहा कि शिवसूत्र ही शैवागम का मूल शास्त्र है। प्रत्यभिज्ञा शब्द का व्याख्या करते हुए कहा कि प्रत्यभिज्ञा दर्शन संस्कृत वाङ्मय से लेकर हिन्दी कविताओं में दिखलाई पड़ता है। इसका उदाहरण देते हुए उन्होंने कुछ ग्रंथों का उल्लेख कियाए जिसमें रामचरितमानसए कामायनी और पद्मावत प्रमुख हैं।
ऑनलाईन व्याख्यान में डॉ0 भुवनेश्वरी भारद्वाजए अभिनवगुप्त संस्थानए लखनऊ ने कहा कि शिव का क्रीड़ामय स्वरुप ही जगत हैए शिव पुर्ण है और पूर्णता निष्क्रियता नहीं है। शिव का पंचकृत्य सृष्टि स्थितिए संहारए निग्रह और अनुग्रह है। वह परम शिव ही अपनी इच्छा से प्रमाणए प्रमेयए प्रमाता रूप में सृष्टि में क्रीड़ारत है।
डॉ0 सिद्धिदात्री भारद्वाजए असिस्टैण्ट प्रो0ए संस्कृत विभागए का0हि0वि0वि0 ने महाकाली की वंदना करते हुए अपने भाषण का आरंभ करते हुए कहा कि यदि जीव शिव है तो वह अपने शिव स्वरूप का अनुभव क्यों नहीं कर पा रहा है। पंचकंचुक के कारण यह संभव हो पा रहा है। अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो0 पतंजलि मिश्रए प्रोफेसरए वेद विभाग ने कहा कि यहां बैठे हुए सबके मूल में गुरुतत्व हैं और वह गुरुतत्व शिव है जिससे कि हम सभी का शरीर बाह्भ्यांतर स्पंदित हो रहा है।
इस सत्र का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो0 माधव जनार्दन रटाटेए प्रोफेसरए धर्मशास्त्र मीमांसा विभाग ने किया। समस्त सत्रों का सूत्र संचालन धर्मागम विभागाध्यक्ष एवं संकायप्रमुखए संस्कृतविद्या धर्मविज्ञान संकाय ने किया।
इस संगोष्ठी में जम्मू कश्मीर से लगभग 60 प्रतिभागी तथा देश.विदेश के लगभग 300 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
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