कार्तिक पूर्णिमा स्नान 2022 : कार्तिक पूर्णिमा (देव दीपावली) तिथि, महत्व, पूजन विधि, कथा और शुभ मुहूर्त
पुराणो मे कार्तिक पूर्णिमा (देव दीपावली) का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। अगर नियमबद्ध होकर यह ब्रत विधीपूर्वक किया जाय तो यह अनन्त पूण्यदायी व्रत माना गया है।
पवित्र कार्तिक पूर्णिमा स्नान दिनांक 07 नवम्बर सायं 03ः37 बजे से प्रारम्भ होकर 08 नवम्बर 2022 को सायं 03ः33 बजे तक सम्पन्न होगा
हिन्दू पंचांग के अनुसार, साल का 8वां महीना कार्तिक महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा ‘कार्तिक पूर्णिमा’ कहलाती है। प्रत्येक वर्ष 15 पूर्णिमाएं होती हैं, जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 16 हो जाती है। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों और सिख धर्म के लिए भी बहुत ज्यादा है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक असुर का संहार किया था, जिसके बाद वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इसलिए इस दिन को ‘त्रिपुरारी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है।
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कार्तिक पूर्णिमा इस साल 8 नवंबर को है.
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पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 7 नवंबर शाम 4.15 बजे से
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पूर्णिमा तिथि समाप्त- 8 नवंबर शाम 4.31 बजे
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पूजा का शुभ मुहूर्त- 8 नवंबर 2022, शाम 4.57 बजे से 5.49 बजे तक.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा पर सूर्योदय से पहले स्नान का खास महत्व है. ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना शुभ रहेगा.
ब्रह्म मुहूर्त में स्नान का समय- 04.57 बजे से 05.49 तक, (8 नबंबर 2022)
अगर आप किसी पवित्र घाट या नदी में स्नान नहीं कर सकते, तो घर में ही स्नान के समय पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करने से भी उतना ही फल मिलता है।
पूजन व दान विधि :
कार्तिक पूर्णिमा के दिन प्रात: गंगा स्नान या पास की नदी/जलाशय में स्नान करना चाहिए। घर के बाहर जाना संभव न हो तो घर में ही स्नान के बाद गंगाजल छिड़क सकते हैं। याद रहे स्नान करते समय ॐ नमः शिवाय का जप जरूर करें इसके अलावा निम्नलिखित महामृत्युंजय मंत्र का भी जाप कर सकते हैं-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !! स्नान करने के बाद भगवान विष्णु, शिव-पार्वती की पूजा करनी चाहिए। ऐसे में पूजा करते समय श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ भी कर सकते हैं, कार्तिक पूर्णिमा की शाम को मंदिरों दीपक जलाना चाहिए। साथ ही शिव मंदिर में जाकर शिव परिवार (शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी) का दर्शन करना चाहिए।, स्नान के बाद राधा-कृष्ण का पूजन और दीपदान करना चाहिए, आज के दिन गाय, हाथी, घोड़ा, रथ और घी का दान करने से संपत्ति बढ़ती है और भेड़ का दान करने से ग्रहयोग के कष्टों दूर होते हैं, कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने वाले अगर बैल का दान करें तो उन्हें शिव पद प्राप्त होता है, कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वालों को इस दिन हवन जरूर करना चाहिए और किसी जरुरतमंद को भोजन कराना चाहिए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान और दान करना दस यज्ञों के समान पुण्यकारी माना जाता है, शास्त्रों में इसे महापुनीत पर्व कहा गया है, कृतिका नक्षत्र पड़ जाने पर इसे महाकार्तिकी कहते हैं, कार्तिक पूर्णिमा भरणी और रोहिणी नक्षत्र में होने से इसका महत्व और बढ़ जाता है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी मनाई जाती है। पुराणों के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तिथि पर ही भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था।
कार्तिक पूर्णिमा का व्रत करने से एक दिन पहले प्याज और लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए, कार्तिक पूर्णिमा का व्रत फल, दूध और हल्के सात्विक भोजन के साथ किया जाता है, यदि आप बूढ़े, बीमार या गर्भवती हैं, तो आपको यह ‘निर्जला’ व्रत करने की सलाह नहीं दी जाती।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन दीप दान का भी विशेष महत्व है, देवताओं की दिपावली होने के कारण इस दिन देवताओं को दीप दान किया जाता है, ऐसा माना जाता है कि दीप दान करने पर जीवन में आने वाले परेशानियां दूर होती है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत की पूजन विधि
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कार्तिक पूर्णिमा पर सुबह स्नान करने के बाद तुलसी की विशेष पूजा करते है।
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इसमें जमीन पर चौक या रंगोली बनाते है उस पर तुलसी का गमला रख कर तुलसीजी को वस्त्र पहनाकर फलफूल माला, धूप, अगरबत्ती, पूड़ी खीर का भोग लगाते है।
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सुहागन औरते सुहाग का सामान चढाती हैं। फिर घी का दीपक जलाकर तुलसी आरती करें।
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जो लोग रोज दिया ना जला पाए वे इस दिन पूरे महीने के दिन के 31 दिए जलाते हैं।
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इस दिन खीर का भोग लगाकर और दीपदान करके आप माँ लक्ष्मी को भी प्रसन्न कर सकते हैं।
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कहा जाता है कि इस दिन किए गए दान से विष्णु भगवान की विशेष कृपा मिलती है।
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पूर्णिमा के दिन सुबह किसी पवित्र नदी, सरोवर या कुंड में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है.
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स्नान के बाद पूजन और दीपदान करना चाहिए
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कार्तिक पूर्णिमा का व्रत रखने वालों को इस दिन हवन जरूर करना चाहिए और किसी जरुरतमंद को भोजन कराना चाहिए.
यहां हम आपको बता रहे हैं कि राशिअनुसार आपको किन चीजों का दान करना चाहिए
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मेष- गुड़ का दान
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वृष- गर्म कपड़ों का दान
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मिथुन- मूंग की दाल का दान
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कर्क- चावलों का दान
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सिंह- गेहूं का दान
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कन्या- हरे रंग का चारा
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तुला- भोजन का दान
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वृश्चिकृ- गुड़ और चना का दान
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धनु- गर्म खाने की चीजें, जैसे बाजरा,
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मकर- कंबल का दान
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कुंभ- काली उड़द की दाल
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मीन- हल्दी और बेसन की मिठाई का दान
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देव दीपावली की कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है, मान्यता है कि एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी, उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया, यह देखकर देवता अचंभित रह गए, विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी, इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा, उनको यह हार स्वीकार नहीं थी, तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी, इससे देवता भयभीत हो गए, उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी, अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए, उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी, इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया।
कार्तिक पूर्णिमा को मनाने का कारण और मान्यता है कि त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस ने प्रयाग में एक लाख साल तक घोर तप किया जिससे ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु का वरदान दिया, इससे त्रिपुरासुर में अहंकार आ गया और वह स्वर्ग के कामकाज में बाधा डालने लगा व देवताओं को आए दिन तंग करने लगा, इस पर सभी देवी देवताओं ने शिव जी से प्रार्थना की कि उन्हें त्रिपुरासुर से मुक्ति दिलाएं, इस पर भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर को मार डाला था, तभी से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा कहा जाने लगा। इसलिए देवताओं ने राक्षसों पर भगवान शिव की विजय के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए इस दिन दीपावली मनाई थी, कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में काशी (वाराणसी) के पवित्र शहर में भक्त गंगा के घाटों पर तेल के दीपक जलाकर और अपने घरों को सजाकर देव दीपावली मनाते हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर का संहार किया था, इसी दिन परस्पर शापवश ग्राह एवं गज बने जय और विजय नामक विष्णु-पार्षदों का उद्धार हुआ था, भगवती तुलसी इसी दिन वनस्पति रूप में पृथ्वी पर प्रकट हुई थीं। ऐसे कई पौराणिक आख्यान हैं जो कार्तिक पूर्णिमा की बड़ाई गाते थकते नहीं हैं। 12 महीनों की पूर्णमासियों में माघ, वैशाख के साथ ही कार्तिकी का क्या महत्व है, यह भविष्य पुराण में आये भरतजी के कथन से ही स्पष्ट हो जाता है, वह माता कौसल्या से कहते हैं कि- यदि श्रीराम के वनवास में मेरी सहमति रही हो तो वैशाख, कार्तिक एवं माघ- इन अधिक पुण्यमयी तथा देवताओं द्वारा भी वंदनीय तीनों पूर्णिमाओं में बिना स्नान-दान के ही मुझसे व्यतीत हो जाएँ। कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिरों में दीपदान करना व दीपदर्शन करना बहुत ही शुभ होता है। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु के साथ गौरी-महादेव का पूजन किया जाता है। साल की 12 पूर्णिमाओं में से कार्तिक, माघ और वैशाख पूर्णिमा को विशेष ही पुण्यदायी माना गया है।
काशी में तब उतर आता है पूरा देवलोक
देव दीपावली का पावन पर्व काशी में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन गंगा नदी के किनारे घाटों पर लाखों की संख्या में दीये जलाकर देवी-देवताओं का स्वागत एवं पूजन किया जाता है. देव दीपावली वाले दिन जिस समय वाराणसी में गंगा के घाटों पर दीपदान होता है, उसे देखकर मानों ऐसा लगता है कि पूरा देवलोक पृथ्वी पर उतर आया हो. इस अलौकिक दृश्य को देखने के लिए लोग यहां पर देश-विदेश से पहुंचते हैं.
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक माह को हिंदू धर्म का पवित्र माह कहा गया है. कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान-दान की शुरुआत देवउठनी एकादशी से हो जाती है. कार्तिक पूर्णिमा से मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं. कार्तिक पूर्णिमा का दिन भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करने पर श्री हरि प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति के सभी संकटों को दूर कर देते हैं.
आज के दिन गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करना या डुबकी लगाना बेहद शुभ माना जाता है. पुराणों में वर्णन है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था. उसके वध की खुशी में देवताओं ने इसी दिन दीपावली मनाई थी. जिसे देव दीपावली भी कहा जाता है. शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत के लिए भी कार्तिक पूर्णिमा का दिन बेहद अच्छा माना जाता है.
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