Tuesday, October 15, 2024
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कार्तिक पूर्णिमा 2022 : कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान का पौराणिक महत्व

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कार्तिक पूर्णिमा 2022 : कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान और दीपदान का पौराणिक महत्व
पवित्र कार्तिक पूर्णिमा स्नान दिनांक 07 नवम्बर सायं 03ः37 बजे से प्रारम्भ होकर 08 नवम्बर 2022 को सायं 03ः33 बजे तक सम्पन्न होगा

भारतीय संस्कृति में कार्तिक पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक माहात्म्य है। कार्तिक पूर्णिमा को देवताओं की दीपावली के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कई धार्मिक आयोजन, पवित्र नदी में स्नान, पूजन और कर्मकांड का विधान है। वर्ष के बारह मासों में कार्तिक मास आध्यात्मिक एवं शारीरिक ऊर्जा संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

गंगा स्नान से मिलता है पूरे वर्ष का फल

कार्तिक पूर्णिमा हमें देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है। इस माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को पुराणों ने अति पुष्करिणी कहा है। स्कंद पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है, वह यदि केवल इन तीन तिथियों में सूर्योदय से पूर्व स्नान करे तो भी पूर्ण फल का भागी हो जाता है।

कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है। माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है, पापों का नाश होता है।
ब्रह्म सरोवर का अवतरण हुआ था
इसी दिन ब्रह्मा जी का ब्रह्म सरोवर पुष्कर में अवतरण हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों तीर्थ यात्री पुष्कर आते हैं, पवित्र पुष्कर सरोवर में स्नान कर ब्रह्मा जी के मंदिर में पूजा करते हैं दीपदान करते हैं। एक कथा यह भी प्रचलित है कि इसी दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया, जो शिव के अनेक नामों में से एक है।

इसी दिन हुआ था त्रिपुरासुर का अंत

इस संदर्भ में एक कथा है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य के आतंक से तीनों लोक भयभीत थे। त्रिपुरासुर ने स्वर्ग लोक पर भी अपना अधिकार जमा लिया था। त्रिपुरासुर ने प्रयाग में काफी दिनों तक तप किया था। उसके तप से तीनों लोक जलने लगे। तब ब्रह्मा जी ने उसे दर्शन दिए, त्रिपुरासुर ने उनसे वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव, जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। सभी देवताओं ने मिलकर ब्रह्मा जी से इस दैत्य के अंत का उपाय पूछा, ब्रह्मा जी ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अंत का रास्ता बताया। देवता भगवान शंकर के पास पहुंचे और उनसे त्रिपुरासुर को मारने के लिए प्रार्थना की। तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का निर्णय लिया। महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई।

इस दिन देवता काशी में मनाते हैं दीपावली

तभी से यह परंपरा काशी में चली आ रही है। माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। पुराणों के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने धर्म, वेदों की रक्षा के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुनः जागते हैं।

योगनिद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु

भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्ज्वलित किए। यह दिन देवताओं की दीपावली है अतःइस दिन दीप दान व व्रत-पूजा आदि करके हम भी देवों की दीपावली में शामिल होते हैं,ताकि हम अपने भीतर देवत्व धारण कर सकें अर्थात सद्गुणों को अपने अंदर समाहित कर सकें,नर से नारायण बन सकें। देवों की दीपावली हमें आसुरी प्रवृत्तियों अर्थात दुर्गुणों को त्यागकर सद्गुणों को धारण करने के लिए प्रेरित करती हैं।

कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की मिलेगी कृपा

कार्तिक महीना भगवान कार्तिकेय द्वारा की गई साधना का माह माना जाता है। इसी कारण इसका नाम कार्तिक महीना पड़ा। नारद पुराण के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा पर संपूर्ण सद्गुणों की प्राप्ति एवं शत्रुओं पर विजय पाने के लिए कार्तिकेय जी के दर्शन करने का विधान है। पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप-तप, पूजन, कीर्तन एवं दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं।पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ व ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्ज्वलित करने चाहिए, गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए।

गुरुनानक जयंती

कार्तिक पूर्णिमा के दिन को सिख धर्म के अनुयायी प्रकाशोत्सव के रूप में मनाते हैं। इसी दिन सिख धर्म के संस्थापक पहले गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। इस दिन सिख पंथ के अनुयायी सुबह स्नान कर गुरुद्वारे में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने का प्रण भी लेते हैं। इसलिए इस पूर्णिमा को गुरु पर्व भी कहा जाता है।

कार्तिक में दीप-दान का महत्व

ऐसा कहा गया है कि जो व्यक्ति कार्तिक मास में श्रीकेशव के निकट अखण्ड दीपदान करता है, वह दिव्य कान्ति से युक्त हो जाता है।
जो लोग कार्तिक मास में श्रीहरि के मन र में दूसरों रखे दीपों को प्रज्वलित करते हैं, उन्हें नर्क नहीं भोगना पड़ता है। ऐसा कहा जाता है कि एक चूहे ने कार्तिक एकादशी में दूसरों के रखे दीप को प्रज्वलित करके दुर्लभ मनुष्य जन्म लाभ लिया था।समुद्र सहित पृथ्वी दान और बछड़ों सहित दुग्धवती करोड़ों गायों के दान का फल विष्णु मंदिर के ऊपर शिखर दीपदान करने के सोलहवें अंश के एक अंश के बराबर भी नहीं है। शिखर या हरि मन्दिर में दीपदान करने से शत-कुल का उद्धार होता है। जो व्यक्ति भक्ति सहित कार्तिक मास में केवल मात्र ज्योति -दीप्ति विष्णु मन्दिर के दर्शन करते हैं, उनके कुल में कोई नारकी नहीं होता।

देवगण भी विष्णु के गृह में दीपदान करने वाले मनुष्य के संग की कामना करते हैं।
कार्तिक-मास में, खेल खेल में ही सही विष्णु के मन्दिर को दीपों से आलोकित करने पर उसे धन, यश, कीर्ति लाभ होती है और सात कुल पवित्र हो जाते हैं। मिट्टी के दीपक में घी / तिल तेल डालकर कार्तिक पूर्णिमा तक दीप प्रज्वलित करें, इससे अवश्य लाभ होगा।

कार्तिक मास में दीपदान कैसे करें

कार्तिक मास में दीप दान करने के भी नियम हैं। दीप दान किसी नदी में, किसी मंदिर, पीपल, चौराहा, किसी दुर्गम स्थान आदि में करना चाहिए। भगवान विष्णु को ध्यान में रखकर किसी स्थान पर दीप जलाना ही दीपदान कहलाता है। दीप दान का आशय अंधकार मिटाकर उजाले के आगमन से है। मंदिरों में दीप दान अधिक किए जाते हैं।

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