Saturday, July 27, 2024
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नेपाल के लोगों का मातृत्व डीएनए भारत और तिब्बत के साथ सम्बंधितः सीसीएमबी व बीएचयू का संयुक्त शोध

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नेपाल के लोगों का मातृत्व डीएनए भारत और तिब्बत के साथ सम्बंधितः सीसीएमबी व बीएचयू का संयुक्त शोध

वाराणसी : हिमालय क्षेत्र का मुख्य भाग होने के कारण, नेपाल दक्षिण और पूर्व एशिया के लोगो के डीएनए के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है। नेपाल की हिमालय पर्वत श्रृंखला ने मनुष्य के माइग्रेशन के लिए एक बैरियर का काम किया है, जबकि साथ ही, इसकी घाटियों ने निरंतर व्यापारिक से रूप लोगो को जोड़ने का काम किया है। इन ऐतिहासिक हिमालयी व्यापार मार्गों के आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व के बावजूद, इस क्षेत्र के लोगों के डीएनए और माइग्रेशन के बारे में बहुत कम जानकारी है। (सीएसआईआर-सेलुलर और आणविक जीवविज्ञान केंद्र (सीसीएमबी), हैदराबाद, और काशी हिन्दू विश्विद्यालय (बी.एच्.यू.) भारत के शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नेपाल की आबादी के मातृ वंश का अध्ययन किया है जिसके परिणाम 15 अक्टूबर 2022 को ह्यूमन जेनेटिक्स पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

डीबीटी-सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (सीडीएफडी), हैदराबाद के निदेशक डॉ के थंगराज ने बताया कि “नेपाली लोगो पर यह पहला सबसे बड़ा अध्ययन है, जहां हमने नेवार, मगर, शेरपा, ब्राह्मण, थारू, तमांग और काठमांडू और पूर्वी नेपाल की आबादी सहित नेपाल के विभिन्न जातीय समूहों के 999 व्यक्तियों के माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए सीक्वेंस का विश्लेषण किया है। और पाया कि अधिकांश नेपाली आबादी ने हिमालय के उचाई पर रहने वाले लोगो की तुलना में तराई की आबादी से अपने मातृ वंश को प्राप्त किया है”।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक ज्ञानेश्वर चौबे ने कहा की, “भारत और तिब्बत के साथ नेपाल के सांस्कृतिक संबंध उनके अनुवांशिक इतिहास में भी परिलक्षित होते हैं।”

इस अध्ययन से प्राप्त परिणामों ने शोधकर्ताओं को इतिहास और अतीत की डेमोग्राफ़िक घटनाओं के बारे में कई घटनाक्रमों को पता करने में मदद की जिसने वर्तमान नेपाली आनुवंशिक विविधता को बनाया। अध्ययन के प्रथम लेखक त्रिभुवन विश्वविद्यालय, राजदीप बसनेट ने बताया कि “हमारे अध्ययन से पता चला है कि नेपालियों के प्राचीन अनुवांशिक डीएनए को धीरे-धीरे विभिन्न मिश्रण एपिसोड द्वारा बदल दिया गया था; साथ ही दक्षिणपूर्व तिब्बत के रास्ते 3.8-6 हजार साल पहले लोगो के हिमालय पार करने के प्रमाण मिले है”।

डीएसटी – बीरबल साहनी इंस्टिट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज़, लखनऊ के डॉ. नीरज राय ने कहा कि “नेवार और मगर जैसे तिबेतो-बर्मन समुदायों की ऊंचाई पर रहने वाले तिब्बतियों/शेरपाओं से डीएनए के आधार पर काफी विभिन्नता दिखती है । इतिहास, पुरातात्विक और आनुवंशिक जानकारी का उपयोग करते हुए इस अध्ययन ने हमें नेपाल के तिबेतो-बर्मन समुदायों के जनसंख्या इतिहास को समझने में मदद की है।’

सीएसआईआर-सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के निदेशक डॉ विनय के नंदीकुरी ने कहा, “इस तरह का अध्ययन प्रारंभिक मानव माइग्रेशन और विभिन्न आबादी की आनुवंशिक समानताएं स्थापित की बेहतर समझ के लिए सहायक है।”

अध्ययन का ऑनलाइन लिंकः

Link: https://link.springer.com/article/10.1007/s00439-022-02488-z

सम्पर्क सूत्र – K. Thangaraj (9908213822)

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