विश्व पर्यावरण दिवस पर कृषि विश्वविद्यालय में हरिशंकरी वाटिका का हुआ स्थापना
वायु प्रदूषण तो केवल पर्यावरणीय मुद्दा है, यदि हम एक साथ मिलकर करें प्रयास, तो पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारणों को बेहतर बनाने की दिशा में कर सकते हैं सार्थक पहल – कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह
कुमारगंज(अयोध्या) :आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज,अयोध्या के तत्वाधान में आज विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर वृक्षारोपण का वृहद रूप से आयोजन किया गया। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह ने कहा कि वायु प्रदूषण तो केवल पर्यावरणीय मुद्दा है, जबकि जल, जंगल ,जमीन ,जानवर, और जन के बीच का रिश्ता और संतुलन बिगड़ना ही पर्यावरण संकट है । इन सब का आपस में सामंजस्य बनाए रखना बहुत ही आवश्यक है ।
पर्यावरण के इतिहास, महत्त्व एवं इसका स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि वायु प्रदूषण दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है और इसे नियंत्रित करना जटिल हो रहा है, लेकिन सब का आह्वान करते हुए कहा कि कुछ भी असंभव नहीं होता है, इसका मुकाबला करने के लिए सबको एक साथ मिलकर आना चाहिए , जिससे पर्यावरण को प्रभावित करने वाले कारणों को बेहतर बनाने की दिशा में कार्य किया जा सके।
हरिशंकरी वृक्ष के महत्व के बारे में डॉ अखिलेश कुमार ने विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि पीपल, बरगद एवं पाकड के पौधों को एक ही गड्ढे में एक साथ लगाया जाता है।
वृक्ष के तने विकसित होने पर ही पर एक ही वृक्ष दिखाई देता है।
इसके साथ साथ ही विश्व विद्यालय के समस्त छात्रावासों में भी बृहद रूप से छात्रों द्वारा छात्र कल्याण अधिष्ठाता, छात्रावास अधीक्षक एवं शिक्षकों के साथ वृक्षारोपण का कार्यक्रम किया गया।
पीपल बरगद व पाकड़ के सम्मिलित रोपण को हरिशंकरी कहते हैं। हरिशंकरी पौध (पीपल, बरगद,पाकड़) पीपल में त्रिदेवों यानि ब्रहमा, विष्णु व महेश का वास माना जाता है। बरगद का वृक्ष अक्षय सुहाग के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि इसकी शाखों के विष्णु का निवास होता है। पाकड़ का वृक्ष भी देवताओं द्वारा संरक्षित माना जाता है। पीपल ही एकलौता पौधा है तो 24 घंटे आक्सीजन का उत्सर्जन करता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरिशंकरी के पौधरोपण के जरिए एक नई राह दिखाई। उन्होंने एक ही स्थान पर तीन पौधे (पीपल, पाकड़ और बरगद ) रोपे।
हरिशंकरी का अर्थ है- विष्णु और शंकर की छायावली (हरि= विष्णु शंकर= शिव) हिन्दू मान्यता में पीपल को विष्णु व बरगद को शंकर का स्वरूप माना जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार पार्वती जी के श्राप- वश विष्णु- पीपल, शंकर- बरगद व ब्रह्मा- पलाश वृक्ष बन गये। पौराणिक मान्यता में पाकड़ वनस्पति जगत का अधिपति व नायक है व याज्ञिक कार्यों हेतु श्रेष्ठ छाया वृक्ष है। इस प्रकार हरिशंकरी की स्थापना एक परम पुण्य व श्रेष्ठ परोपकारी कार्य है।
हरिशंकरी के वृक्षों का विवरण : हरिशंकरी के तीनों वृक्षों को एक ही स्थान पर इस प्रकार रोपित किया जाता है कि तीनों वृक्षों का संयुक्त छत्र विकसित हो व तीनों वृक्षों के तने विकसित होने पर एक तने के रूप में दिखाई दें। हरिशंकरी के तीनों वृक्षों का विस्तृत विवरण निम्र अनुसार है।
पीपल : पीपल को संस्कृत में पिप्पल (अर्थात् इसमें जल है), बोधिद्रुम (बोधि प्रदान करने वाला वृक्ष), चलदल (निरन्तर हिलती रहने वाली पत्तियों वाला), कुंजराशन (हाथी का भोजन), अच्युतावास (भगवान विष्णु का निवास), पवित्रक (पवित्र करने वाला) अश्वत्थ (यज्ञ की अग्रि का निवास स्थल) तथा वैज्ञानिक भाषा में फाइकस रिलिजिओसा कहते हैं। चिडिय़ाँ इसके फलों को खाकर जहां मल त्याग करती है वहां थोड़ी सी भी नमी प्राप्त होने पर यह अंकुरित होकर जीवन संघर्ष करता है। दूर- दूर तक जड़ें फैलाकर जल प्राप्त कर लेना इसकी ऐसी दुर्लभ विशेषता है जिसके कारण इसका नाम पिप्पल (अर्थात् इसमें जल है), रखा गया है। वैज्ञानिक भी इसे पर्यावरणीय दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व का वृक्ष मानते हैं। इसके पके फल मीठे और पौष्टिक होते हैं।
औषधीय दृष्टि से पीपल शीतल, रुक्ष, वर्ण को उत्तम बनाने वाला, एवं पित्त, कफ, व्रण तथा रक्तविकार को दूर करने वाला है।
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इस वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास माना जाता है। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ (अश्वत्थ: सर्व वृक्षाणाम्) इस वृक्ष के रोपण, सिंचन, परिक्रमा, नमन- पूजन करने से हर तरह से कल्याण होता है और सभी दुर्भाग्यों का नाश होता है।
जलाशयों के किनारे इस वृक्ष के रोपण का विशेष पुण्य बताया गया है, (इसकी पत्तियों में चूना अधिक मात्रा में होता है जो जल को शुद्ध करता है)। बृहस्पति ग्रह की शान्ति के लिए इस वृक्ष की समिधा प्रयुक्त होती है। अरणी से यज्ञ की अग्रि उत्पन्न करने के लिए इसके काष्ठ की मथनी बनती है। शास्त्रीय मान्यता में घर के पश्चिम में स्थित पीपल शुभ किन्तु पूरब दिशा में अशुभ होता है। ध्यान करने के लिये पीपल की छाया सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है, राम चरित मानस में वर्णन है कि काकभुशुण्डि जी पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते थे (पीपर तरु तर ध्यान जो धरई)।
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