Saturday, July 27, 2024
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 भारत के इन राज्यों में अलग तरह से मनाई जाती है दिपावली

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 भारत के इन राज्यों में अलग तरह से मनाई जाती है दिपावली

प्रकाश पर्व दिपावली आज पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस पर्व को हर उम्र और वर्ग के लोग बड़े ही उल्लास के साथ मना रहे हैं। हमारे देश में कई प्रकार की संस्कृतियां और कई प्रकार की मान्यताओं के लोग निवास करते हैं लेकिन सभी किसी न किसी वजह से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि देश अलग-अलग हिस्सों में दिवाली भी अगल-अलग कारणों से मनाई जाती है। इस दिन प्रभु श्रीराम, सीता माता और लक्ष्मण जी के साथ 14 साल के वनवास को पूर्ण करने के बाद वापस अयोध्या आए थे। इन सभी के स्वागत के लिए अयोध्या नगर वासियों ने दीयों से सजावट की थी। उस समय से यह त्योहार हर साल उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हमारे देश में कई राज्य ऐसे भी हैं जहां अलग-अलग तरह से इस पर्व को मनाया जाता है। आइए आपको बताते है कि किन राज्यों में अलग तरह से दिवाली मनाई जाती है…

गुजरात में ऐसे मानते हैं दिवाली

दीयों का त्योहार दिवाली हमारे देश में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन आपको बता दें कि गुजरात में दिवाली मानने का तरीका थोड़ा अलग है। गुजरात में लोग अपने घरों के बाहर लक्ष्मी माता के लिए लाल रंग से चरणों के निशान बनाये जाते हैं। दिवाली को यहां पर लोग नए साल के रूप में मानते हैं और नए कार्य का आरंभ करना भी बहुत शुभ माना जाता है।

बाकी राज्यों में दिवाली की रात में काजल लगाया जाता है लेकिन गुजरात में लोग अगली सुबह दीए से बना हुआ काजल मुख्य रूप से ज्यादातर महिलाएं ही लगाती हैं। गुजरात में यह एक शुभ प्रथा के रूप में माना जाता है।

पश्चिम बंगाल में दिवाली पर होती है मां काली की पूजा

दिवाली का पर्व बंगाल में काली जी के पूजन के रूप में मनाया जाता है। आपको बता दें कि दिवाली के दिन यहां पर लोग काली जी का पूजन करते हैं और उसे बहुत शुभ माना जाता। काली जी का बंगाल में दक्षिणेश्वर और कालीघाट मंदिर है जहां पर उनकी पूजा को बहुत विधि-विधान से की जाती है।

कई लोग दिवाली के दिन यहां पर काली जी की पूजा करने के लिए आते हैं। यहां पर काली जी पंडाल भी लोग जगह-जगह लगाते हैं। दिवाली की रात बंगाल में लोग रात में अपने घरों पर और मंदिरों पर 14 दीए जलाते हैं। मान्यताओं के अनुसार 14 दीए जलाने से बुरी शक्तियों का नाश होता है।

गोआ में ऐसे मानते हैं दिवाली

गोआ में दिवाली मनाने का तरीका भी काफी अलग होता है। गोआ के लोग दीपावली का त्योहार नरक चतुर्दशी के दिन मनाते हैं। आपको बता दें कि यहां पर दिवाली के दिन नरकासुर का पुतला बनाया जाता है और उस पुतले को गलियों में घुमाया जाता है। इसके बाद उसका दहन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गोआ में नरकासुर ने राज किया था। उससे लोग बहुत परेशान रहते थे। कुछ सालों बाद जब उसका वध हुआ उसके बाद से ही यहां पर वह दिन दिवाली के रूप में मनाया जाने लगा।

महाराष्ट्र में 4 दिनों तक होती है पूजा

आपको बता दें कि महाराष्ट्र में दिवाली का त्योहार 4 दिनों तक चलता है। यहां पर पहले दिन वसुर बरस मनाया जाता है जिसमें लोग आरती गाते हुए गाय और बछड़े का पूजन करते हैं। दूसरे दिन धनतेरस पर्व मनाया जाता है। इसके बाद तीसरे दिन पर नरक चतुर्दशी में सूर्योदय से पहले उबटन करके स्नान की परंपरा को लोग निभाते हैं। फिर चौथे दिन दिवाली होती है जिसमें लक्ष्मी पूजन के पहले चकली, सेव और मिठाइयां आदि पकवान बनाए जाते हैं।

इन राज्यों के अलावा भी कई सारे राज्यों में अलग तरह से दिवाली मनाने की परंपरा है। राज्यवार दीपावली मनाए जाने की परंपरा के साथ भारत की भगौलीक भिन्नता के आधार पर भी दिवाली मनाने के तरीकों में भिन्नता देखने को मिलती है। दिवाली की इस उत्साह भरे माहौल को ऊर्जावान करती इस संस्कृति की आगे बढ़ाते हुए निरंतर चलती जा रही है। इसको आगे बढ़ाते हुए आइए आपको बताते हैं कि क्षेत्रीय आधार पर भारत में किस तरह से दिवाली मनाई जाती है…

उत्तर भारत की दिवाली

चौदह साल वनवास काटने के बाद जिस दिन भगवान राम अयोध्या लौटे उस शाम अयोध्या नगर वासियों ने उनके स्वागत में गली-गली में दिए जला दिए। उस दिन के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में हर दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा। यह पर्व अब देश और दुनिया के कई हिस्सों में मनाया जाता है।


कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामम राक्षस का वध किया था। इसी के खुशी में चतुर्दशी के अगले दिन दक्षिण भारत दिपावली मनाने का चलन है।

पश्चिमी भारत में दीपावली

पांच दिवसीय दिवाली पर्व के चौथे दिन पश्चिमी भारत में राक्षस राज बाली के पृथ्वी पर वापस आने की खुशी में दीपावली का पर्व मनाया जाता है। कहा जाता है भगवान विष्णु ने दूसरे लोक में भेज दिया था जिसके काफी समय बाद बाली पृथ्वी पर वापस आया था। बाली के लौटने के इस दिन को दिवाली के रूप में मनाया जाता है।

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