कश्मीरी पंडितों का नरसंहार : क्या फिर खुलेगी कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की फाइल, राष्ट्रपति से लगाई गई SIT जांच की गुहार
अयोध्या। द कश्मीर फाइल्स की बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई जारी है। इस एक फिल्म ने कश्मीरी पंडितों को फिर न्याय के लिए अपनी आवाज बुलंद करने की ताकत दे दी है। समाज के कई दूसरे लोग भी आगे आकर इन लोगों के लिए न्यया की बात कर रहे हैं। अब देश के राष्ट्रपति के लिए एक याचिका दायर की गई है। ये याचिका एडवोकेट विनीत जिंदल द्वारा दायर की गई है।उन्होंने अपनी याचिका में कहा है कि उन मामलों की दोबारा जांच होनी चाहिए जहां पर 1989-90 के समय कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। अब विनीत जिंदल से पहले कई दूसरे लोग भी फिल्म देखने के बाद ये मांग उठा चुके हैं।
अपने पत्र में वकील ने तर्क दिया कि यदि 33 साल पहले हुए सिख विरोधी दंगों से संबंधित मामलों को फिर से खोला जा सकता है और फिर से जांच की जा सकती है तो 27 साल पहले हुए कश्मीरी पंडितों के मामलों को भी फिर से खोला जा सकता है और फिर से जांच की जा सकती है। अपने पत्र में जिंदल ने कहा कि घटनाओं के शिकार लोग शारीरिक, भावनात्मक और मानसिक आघात की स्थिति में थे और पिछले कई वर्षों से अपनी आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी शिकायतों को दर्ज कराने के अवसर से वंचित हैं। 19 जनवरी 1990 को वो दिन माना जाता है जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी हुआ था. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच तो जंग 1947 से ही जारी है. पर कश्मीर में लोकल स्थिति इतनी खराब नहीं थी.
तमाम कहानियां हैं कश्मीरी मुसलमानों और कश्मीरी पंडितों के प्यार की. पर 1980 के बाद माहौल बदलने लगा था. रूस अफगानिस्तान पर चढ़ाई कर चुका था. अमेरिका उसे वहां से निकालने की फिराक में था. लिहाजा अफगानिस्तान के लोगों को मुजाहिदीन बनाया जाने लगा. ये लोग बगैर जान की परवाह किये रूस के सैनिकों को मारना चाहते थे. इसमें सबसे पहले वो लोग शामिल हुए जो अफगानिस्तान की जनता के लिए पहले से ही समस्या थे. क्रूर, वहशी लोग. उठाईगीर और अपराधी. इन सबकी ट्रेनिंग पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर में होने लगी. तो आस-पास के लोगों से इनका कॉन्टैक्ट होना शुरू हुआ. इनसे जुड़े वो लोग जो पहले से ही कश्मीर के लिए समस्या बने हुए थे. क्रूर, वहशी लोग. उठाईगीर और अपराधी. इन सबको प्रेरणा मिली पाकिस्तान के शासक जनरल ज़िया से. इतने ऊंचे पद पर रहकर वो यही काम कर रहे थे. क्रूरता उनका शासन था. वहशीपना न्याय. धर्म के उठाईगीर थे. अपराध जनता से कर रहे थे.
लेकिन राह आज भी आसान नहीं
कश्मीरी हिन्दू 19 जनवरी 1990 के दिन को “दुःखद बहिर्गमन दिवस” के रूप में याद करते हैं। जनवरी का महीना पूरी दुनिया में नए साल के लिए एक उम्मीद ले कर आता है, लेकिन कश्मीरी पंडितों के लिए यह महीना दुख, दर्द और निराशा से भरा है। 19 जनवरी प्रतीक बन चुका है उस त्रासदी का,जो कश्मीर में 1990 में घटित हुई। पिछले 32 साल में कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में बसाने की कई कोशिशें हुईं, यहाँ तक कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद यह प्रयास और तेज हुआ है। जिसके सकारात्मक असर भी दिख रहे हैं लेकिन नतीजा अभी भी संतोषजनक नहीं है। हाल के सालों में भी आतंकियों ने कश्मीरी पंडितों में डर बनाए रखने के लिए कई कश्मीरी पंडितों यहाँ तक की जम्मू-कश्मीर में भाजपा नेताओं की भी हत्या की।
वर्ष 1990 में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार के असली गुनहगार वह राजनीतिक पार्टी है, जिसकी उस समय सरकार थी। उस पार्टी के मुखिया धृतराष्ट्र की तरह नरसंहार देखते रहे। न तो उस नरसंहार रोकने का प्रयास किया गया और न ही बाद में इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई, वापसी की आशाओं के बीच कश्मीरी पंडितों को भी इस बात का अहसास है कि घाटी अब पहले जैसी नहीं रही। हालाँकि, 5 अगस्त, 2019 को जब भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किया तो कश्मीरी पंडित बेहद खुश थे। मगर उनकी वापसी अभी भी सुनिश्चित नहीं हुई है। ऐसे में कोई भी कश्मीरी पंडित कैसे उस खौफनाक पलायन को भूल जाए। चलते-चलते पिछले साल का अनुपम खेर का वह वीडियो भी आपके सामने है जब कश्मीरी पंडितों के दर्द को वह इस उम्मीद में साझा कर रहे हैं कि जल्द ही वह दौर बदले और कश्मीरी पंडित सुरक्षित अपने घरों में हों।