Friday, May 17, 2024
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जाने शहतूत के गुण, फायदे एवं नुकसान

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शहतूत के गुण, फायदे एवं नुकसान

शहतूत फल जितना अधिक खाने में स्वादिष्ट होता है उतना ही यह हमारे सेहत को फायदे पहुंचता है। पौष्टिक तत्वों से भरपूत यह गुणकारी फल कई ज्यादा एंटीऑक्सीडेंट से भरा होता है। गर्मी में मौसम में शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है।इसके सेवन से पानी की कमी दूर की जा सकती है। इस फल में आयरन, कैल्शियम, विटामिन A, C, E, K, फोलेट, नियासिन और फीवर उच्च मात्रा में पाया जाता है। यह काळा, नीले और लाल रंग का होता है। इस फल में खास औषधीय गुण होते है जो गर्मियों में लू से लड़ने की क्षमता रखता है। आइये जानते हैं शहतूत के फायदे और नुकसान।

शहतूत खाने के फायदे

इसके मीठे खट्टे स्वाद के कारण इसका उपयोग शरबत जैम, जैली, शराब, चाय आदि पदार्थों को बनाने में किया जाता है। भारत में यह कश्मीर, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर-प्रदेश और हिमांचल में पाया जाता है। शहतूत में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। यह बालों के लिए भी फायदेमंद होता है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये

अगर हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता हो जाये तो हमारे सेहत को कभी कोई नुक्सान नहीं हो सकता है। इस फल में मौजूद विटामिन सी शरीर में बिमारियों को छूने नहीं देता है जिससे इम्युनिटी सिस्टम मजबूत होता है। इसमें पाए जाने वाले मिनरल्स शरीर को मजबूती देते हैं।

शहतूत
शहतूत

पेट के कीड़े मारे

बहुत बार पेट में कीड़े होने से आदमी को हर समय परेशानी होती रहती है और उसका शरीर दुबला-पतला हो जाता है। बच्चों में यह समस्या ज्यादा होती है। लेकिन शहतूत में पाया जाने वाला विटामिन A, कैल्शियम, पोटेशियम और फास्फोरस पेट के कीड़ों को ख़त्म करने में सहायहक होते हैं। इसके अलावा इस फल के सेवन से शरीर को जरूरी न्यट्रिएंट्स भी मिलते हैं।

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कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम करे

शरीर में कोलेस्ट्रॉल कम होगा तो बीमारियां भी कम होंगी। शहतूत के फल का रस दिल के रोगियों के लिए बहुत अधिक लाभकारी होता है। इसके सेवन से आपका हृदय मजबूत और स्वस्थ होता है। दिल के दौरे वाले इंसान को इसका रस पिलाना काफी अच्छा माना जाता है।

कैंसर से बचाव करे

कैंसर का इलाज तो आप इसके सेवन से नहीं कर सकते हैं लेकिन अगर आप इसका सेवन करेंगे तो इसका खतरा टल जाता है। इस फल में भरपूर मात्रा में पाए जाने वाला एंटीऑक्सिडेंट्स मुक्त कणों से हमारी रक्षा करता है जो हमरी स्वस्थ कोशिकाओं को नुक्सान पहुंचा सकते हैं जिससे कैंसर जैसे रोग का खतरा बनता है।

रक्तचाप नियंत्रित करे

शहतूत खाने से हमारे शरीर का रक्तचाप नियंत्रित रहता है। यह खून को शुद्ध करने और शरीर में परस्पर रूप से संचारित करने में मदद करता है। इससे रक्त वाहिकाओं को आराम मिलता है साथ ही यह रक्त की थककत और दिल के दौरे जैसी बिमारियों जैसी समस्याओं से राहत पहुंचता है।

शहतूत
शहतूत

पाचन तंत्र मजबूत करे

शहतूत में फाइबर की मात्रा अच्छी होती है जो हमारे पाचन को सुधारने में मदद करता है जिससे पाचन तंत्र के माध्यम से भोजन को पचाने में सहायता मिलती। अगर पाचन तंत्र स्वस्थ और मजबूत होता है जो पेट की समस्याएं जैसे कब्ज, ऐंठन, गैस, पेट दर्द नहीं होते हैं।

हड्डियों को मजबूत करे

विटामिन क, आयरन, और कैल्शियम के अलावा फास्फोरस और मैग्नीशियम से भरपूर यह फल हमारे हड्डियों के ऊतकों के निर्माण और रखरखाव में फायदा करता है। यह हड्डियों को मजबूती और स्वस्थ बनाये रखने में मदद करता है।

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त्वचा के लिए फायदेमंद

त्वचा को नरम और मुलायम बनाने के लिए शहतूत बहुत ही अच्छा फल है। इसमें विटामिन A, इ के साथ साथ लौटीं, बिता-कैरोटीन, अल्फ़ा कैरोटीन घातक भी पाए जाते हैं। जो त्वचा, ऊतक, बाल और शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इसके सेवन से त्वचा गोरी और मुलायम होती है साथ ही कोई दाग-धब्बे कम होने लगते हैं।

बालों को स्वस्थ रखने में मदद करे

शहतूत के चमत्कारी गुण आपके बालों को स्वस्थ बनाने में मदद करते हैं। इसके सेवन से बालों का विकास बढ़ता है साथ ही बालों को झड़ने से रोकता है। इसके उपयोग से बालों से मुक्त कणों को रोका जा सकता है जिससे बालों में नयी चमक और कालापन आता है।

आंखों के लिए भी उपयोगी है शहतूत 

शहतूत में पाए जाने वाले कैरोटीनॉइड में से एक है जियेजैंथिन, जो एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है और रेटिना को होने वाले नुकसान से बचाता है। यह मोतियाबिंद से भी बचाने में कारगर होता है। अगर आपको अपनी आंखों को स्वस्थ रखना है, तो शहतूत का सेवन कर सकते हैं।

शहतूत

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प्रकृति अपने आप में हर एक चीज से भरपूर है। खासकर नेचुरल तरीके से निर्मित खाद्य पदार्थ, जो कि कई तरह के पोषक तत्व और एंटीऑक्सिडेंट गुणों से भरपूर हैं। सेहत के लिए वैसे तो कई फल और सब्जियां लाभकारी हैं लेकिन आज हम आपको एक खास फल को लेकर जानकारी दे रहे हैं। दरअसल, यहां हम शहतूत (mulberry) के बारे में बात कर रहे हैं। आमतौर पर शहतूत के पेड़ आपको अपने मुहल्ले में भी मिल जाते हैं। इसका फल बहुत ही पौष्टिक है जो खाने में तो स्वादिष्ट है ही और इसके स्वस्थ्य लाभ ही हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स और डायटीशियन्स भी शहतूत खाने की सलाह देते हैं

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शहतूत के पत्ते खाने से कंट्रोल होती है शुगर, जानें इसके अन्य चमत्कारी फायदे

शहतूत का फल खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। शहतूत में विटामिन ए, कैल्शियम और फॉस्फोरस जैसे पौष्टिक तत्व होते हैं जो कई स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि न सिर्फ शहतूत का फल, बल्कि इसके पत्तों में भी कई औषधीय गुण होते हैं। इसके पत्तों का सेवन करने से डायबिटीज से लेकर मोटापे जैसी समस्याओं में लाभ होता है। आज के इस लेख में हम आपको शहतूत के पत्तों के फायदे बताने जा रहे हैं-

डायबिटीज कंट्रोल करे 

डायबिटीज़ के मरीजों के लिए शहतूत की पत्तियों का सेवन बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसके पत्तों में डीएनजे नामक तत्व पाए जाते हैं, जो शुगर को कंट्रोल  करने में मदद करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एकरबोस नामक कंपाउंड ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने का काम करता है।

दिल को स्वस्थ रखे 

शहतूत की पत्तियों का सेवन हमारे दिल के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। इनमें फेनोलिक्स और फ्लैवोनॉइड नामक तत्व मौजूद होते हैं जो दिल की बिमारियों के खतरे को कम करते हैं। शहतूत की पत्तियों में एंटीऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं जो कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं।

खून साफ करे 

खून साफ न होने के कारण कई तरह की त्वचा संबंधी परेशानियां होने लगती हैं। ऐसे में शहतूत की पत्तियों का सेवन आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। शहतूत की पत्तियों से बनी चाय का सेवन करने से खून साफ होता है और त्वचा संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिलता है। शहतूत की पत्तियों का सेवन करने से स्किन एलर्जी से भी छुटकारा मिलता है।

सूजन और घाव में फायदेमंद 

घाव या सूजन होने पर भी शहतूत की पत्तियों का इस्तेमाल फायदेमंद होता है। अगर शरीर के किसी अंग में सूजन हो गई हो तो शहतूत की पत्तियों को पीसकर उसका रस निकाल लें और प्रभावित हिस्से पर लगाएं। ऐसा करने से सूजन से जल्द राहत मिलती है। इसके साथ ही शहतूत की पत्तियों को पीसकर इसका लेप लगाने से घा जल्दी भरता है।

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मोटापा कम करने में मददगार 

मोटापे से जूझ रहे लोगों के लिए शहतूत की पत्तियों का सेवन फायदेमंद होता है। शहतूत की पत्तियों का अर्क पीने से मोटापा कम करने में मदद मिलती है। इसके साथ ही यह लिवर को स्वस्थ रखने में मदद करती है। आप चाहें तो शहतूत की पत्तियों की चाय बनाकर पी सकती हैं।

शहतूत खाने के नुकसान

आपको यह तो पता ही होगा किसी भी फल को जायगा खाने के नुक्सान भी हो सकते है निचे मेने शहतूत के नुकसान के बारे में बताया है।गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिला को शहतूत से बचना चाहिए। क्योंकि इससे हानियां हो सकते हैं।

शहतूत के अधिक सेवन से बचना चाहिए। यह त्वचा के कैंसर का कारण बन सकता है।

शहतूत का अधिक सेवन से सिरदर्द, भूख, धुंधला दृष्टि, चक्कर आना, अत्यधिक पसीना आना, भ्रम, झटके आदि समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

लिवर की समस्याओं वाले रोगियों में, अधिक शहतूत के सेवन से लिवर पर भार हो सकता है और आगे चलकर अंगों को नुकसान पहुंच सकता है।

जो व्यक्ति किडनी की गंभीर समस्याओं से पीड़ित हों उन्हें शहतूत नहीं खाना चाहिए क्योंकि शहतूत में अधिक मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है जो किडनी की समस्या को बढ़ा सकता है।

इसका वृक्ष छोटे से लेकर मध्यम आकार का १० मीटर से २० मीटर ऊँचा होता है और तेजी से बढ़ता है। इसका जीवनकाल कम होता है। यह चीन का देशज है किन्तु अन्य स्थानों पर भी आसानी से इसकी खेती की जाती है। इसे संस्कृत में तूत मराठी में तूती तुर्की भाषा में दूत, फारसी, अजरबैजानी एवं आर्मेनी भाषाओं में तूत कहते हैं रेशम के कीड़ों को खिलाने के लिये सफेद शहतूत की खेती की जाती है। यह भारत के अन्दर खासकर उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश बिहार झारखण्ड मध्य.प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल.प्रदेश इत्यादि राज्यों में अत्यधिक इसकी खेती की जाती है।

शहतूत का फल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, उतना सेहतमंद भी। आयुर्वेद में शहतूत के ढेरों फायदों का बखान है। शहतूत में पोटैशियम, विटामिन ए और फॉस्फोरस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। आमतौर पर शहतूत दो प्रकार के होते हैं। शहतूत एक ऐसा फल है जिसे कई लोग कच्चा ही खाना पसंद करते हैं, इसके अलावा शहतूत के पत्तों को घाव या फोड़े पर लगाना भी फायदेमंद होता है। इसके प्रयोग से घाव बहुत जल्दी भर जाते हैं।

अगर आपको खुजली की दिक्कत है तो इसके पत्तों का लेप फायदेमंद रहेगा। शहतूत की पत्तियों को पानी में उबालकर उस पानी से गरारे करने से गले की खराश दूर हो जाती है शहतूत की मुख्य 3 किस्में हैं, सफेद शहतूत, लाल शहतूत और काला शहतूत। शहतूत का फल जितना रसीला और मीठा होता है, उतनी ही ज्यादा मात्रा में इस में एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है। गरमी के मौसम में शरीर को ज्यादा पानी की जरूरत होती है और इस के सेवन से पानी की कमी को दूर किया जा सकता है।

यह फल खूबसूरत ही नहीं होता, बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है। यह पोषक तत्त्वों की कमी को पूरा करता है। पौष्टिकता की नजर से शहतूत में विटामिन सी, अम्ल, एंटीआक्सीडेंट व खनिज काफी मात्रा में पाए जाते हैं। पोटेशियम और मैंगनीज जैसे खनिजों से युक्त शहतूत में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस भी पाए जाते हैं, चूंकि शहतूत का फल एंटीआक्सीडेंट का अच्छा है, इसलिए यह हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।

गरमी में जामुनी शहतूत अपने स्वाद के कारण सभी का मन मोह लेता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस का सेवन गरमी के प्रकोप को कम करता है। शहतूत का पका फल कैंसर के खतरे को कम करता है। इसके अलावा यह गठिया, दिमागी विकार, गुर्दे के रोगों व मलेरिया आदि के इलाज में भी कारगर होता है।

यह फल कई दूसरे रोगों जैसे कब्ज, अजीर्ण, सिर का चक्कर, नींद न आना, खून की कमी व बुखार जैसी बीमारियों के इलाज में भी उपयोगी होता है। शहतूत एंटी ऐज यानी बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करता है, यह बालों में भूरापन लाता है, क्योंकि इस में ज्यादा एंटीआक्सीडेंट पाया जाता है, जो बालों के लिए अच्छा होता है। यह नकसीर व गरमी के प्रकोप को कम करता है। शहतूत का शरबत बुखार में दिया जाता है। शहतूत का शरबत खांसी व गले की खराश मिटाता है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने के साथ खून को साफ करता है।

पुराने समय से ही चीन में इस फल का इस्तेमाल कई किस्म की दवाओं को बनाने में किया जाता रहा है। शहतूत एक सुंदर पत्तेदार पौधा है, जो कि 9.12 मीटर ऊंचा और ज्यादा टहनियों वाला होता है। इस के पत्ते करीब 5.10 सेंटीमीटर लंबे व 3.5 सेंटीमीटर चौड़े होते हैं। फूल हरे रंग का होता है। फल की ऊपरी परत नरम व हलके जामुनी या हरे रंग की होती है, जिस के अंदर सफेद रंग के बीज होते हैं। फल खूबसूरत होता है, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

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इन्हें इस्तेमाल में ला कर 50.60 फीसदी तक ताजा शहतूत जूस निकाला जाता है। हिमाचल प्रदेश में इस फल में फरवरी से मार्च महीने तक फूल आते हैं और फल अप्रैल से जून महीनों में पक कर तैयार होते हैं।
एक अच्छे पौधे से करीब 10.15 किलोग्राम फलों की पैदावार होती है। यह पैदावार कुदरती वातावरण व पेड़ की उम्र पर भी निर्भर करती है। शहतूत के पेड़ से टहनियां काट कर उस की 6.8 इंच लंबी कटिंग को मिट्टी में लगाया जाता है। इस के 6 महीने के बाद ही 3.4 फुट तक का पेड़ तैयार हो जाता है। 1 एकड़ में शहतूत के करीब 5000 पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिन से करीब 8000 किलोग्राम शहतूत के फल प्राप्त किए जा सकते हैं।

शहतूत की लकड़ी से बैट बनता है, इस के साथ ही हाकी स्टिक, टेबल टेनिस रैकेट वगैरह भी शहतूत की लकड़ी से ही बनाए जाते हैं। आज की जरूरत दक्षिण भारत के अलावा उत्तर भारत में भी शहतूत का उत्पादन होता है। वैसे तो हरे व काले शहतूत के खूबसूरत और मीठे फल खाने में खासे मजेदार होते हैं, मगर शहतूत की खेती का खास मकसद रेशम कीटपालन से जुड़ा होता है, इसलिए इस की खेती करने से दोहरा फायदा होता है।

रेशम कीटपालन के व्यवसाय में 50 फीसदी खर्च पत्तियों पर ही हो जाता है, यह कारोबार पत्तियों पर ही निर्भर करता है, पत्तियों पर रेशमकीट का जीवनचक्र चलता है, इसी जीवनचक्र में ये कीट रेशम के कोए बनाते हैं। रेशम के कोए 300-400 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आसानी से बेचे जा सकते हैं। यदि किसान शहतूत की खेती कर के खुद कीटपालन करें तो दूसरी फसलों से ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। शहतूत के पेड़ के हर भाग जैसे फल, हरे पत्ते व लकड़ी का अपना महत्त्व है।

ये सभी भाग चिकित्सीय गुणों से भरपूर होते हैं। इस के फल सालभर में 5.8 हफ्ते तक ही मिलते हैं। सामान्य व नमी की परिस्थितियों में यह फल 1.2 दिनों व कोल्ड स्टोरेज में 2.4 दिनों में खराब हो जाता हैण् शहतूत के रस को 3 महीने के लिए कोल्ड स्टोरेज में रखा जा सकता है, जबकि बोतल बंद पेय कमरे के तापमान में 12 महीने के लिए रख सकते हैं। इस के तमाम उत्पाद जैसे ड्रिंक, स्क्वैश, सिरप, जैली, जैम, फू्रट सौस, फ्रूट पाउडर, फ्रूट वाइन वगैरह बनाना समय की मांग है, ताकि किसानों को इस से अतिरिक्त आमदनी मिल सके।

शहतूत में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व
पौष्टिक तत्त्व मात्रा
खाद्य भाग 100 फीसदी
नमी 85.88 फीसदी
मैलिक अम्ल 1.1.1.8 फीसदी
कार्बोहाइड्रेट 7.8.9.0 फीसदी
प्रोटीन 0.5.1.4 फीसदी
रेशा 1.30 फीसदी
वसा 0.3.0.5 फीसदी
खनिज पदार्थ 0.8.1.0 फीसदी
कैरोटीन 0.17 फीसदी
कैल्शियम 0.17.0.39 फीसदी
पोटेशियम 1.00.1.49 फीसदी
मैग्नीशियम 0.09.0.10 फीसदी
सोडियम 0.01.0.02 फीसदी
फास्फोरस 0.18.0.21 फीसदी
आयरन 0.17.0.17 फीसदी
विटामिन सी 12.50 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम
निकोटिनिक अम्ल 0.7.0.8 फीसदी

प्रदेश में रेशम उत्पादकों के लिए खुशखबरी।शहतूत के 300 पेड़ लगाइये और बतौर प्रोत्साहन राशि सरकार से एक लाख रुपये पाइये। इस धनराशि से हॉल बनाया जा सकेगा। वहीं किसानों की तर्ज पर बागवानों को भी उद्यानिकी के उपकरणों की खरीद के लिए 80 फीसद सब्सिडी मिल सकेगी। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में यह सब्सिडी 90 फीसद रहेगी।

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों को जल्द ही जैविक जिलों में बदला जाएगा।कृषि और उद्यान मंत्री डा हरक सिंह रावत ने गुरुवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि किसानों और बागवानों को प्रोत्साहित करने को लिए गए फैसलों का दूरदराज अच्छा असर रहा है। रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने को शहतूत के पेड़ लगाने को प्रोत्साहन देने के साथ ही अन्य कई सुविधाएं भी मुहैया कराई जा रही हैं। एक लाख रुपये धनराशि से रेशम उत्पादक बड़े हॉल का निर्माण कर सकेंगे।

फलों और कृषि उत्पादों के लिए समर्थन मूल्य और बोनस योजना से पहाड़ की डूबती और बंजर होती खेती को बचाने में मदद मिलेगी। अब तक राज्य में 40 हजार जैविक किसानों का पंजीकरण किया जा चुका है। दस विकासखंडों को पूरी तरह जैविक विकासखंड घोषित किया गया है। हर मंडी में जैविक उत्पादों के लिए चार दुकानें आरक्षित की गई हैं। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की 36 करोड़ धनराशि की मदद से जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। रेशम विभाग भीमताल ब्लॉक के वन पंचायतों में मणिपुरी बांज के पौधे लगाने जा रहा है। इसकी शुरुआत 15 जुलाई से होगी। ब्लॉक रेशम विभाग को वन पंचायतों की खाली भूमि उपलब्ध कराएगा, जहां वह 30 हजार मणिपुरी बांज के पौधे लगाएगा। ब्लॉक इन पौधों की सुरक्षा के लिए मनरेगा के तहत सुरक्षा तार भी लगाएगा। पर्वतीय क्षेत्रों में यह काम पहली बार किया जा रहा है।

इसके लिए रेशम विभाग ने तैयारी लगभग पूरी कर ली है। बांज के पौधे कुसुमखेड़ा हल्द्वानी स्थित फॉर्म में तैयार किए गए हैं। विभाग की माने तो तसर रेशम का उत्पादन करने से कास्तकारों की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। वर्तमान में नैनीताल जनपद में विभाग ने शहतूत की पहली फसल से 15,895 किलोग्राम कोयों का उत्पादन किया है। दूसरी फसल सितंबर.अक्टूबर में लगाई जाएगी। यह उत्पादन कोटाबाग, रामनगर, हल्द्वानी और भीमताल के 85 ग्राम सभाओं के 780 परिवारों ने मिलकर किया है।

पर्वतीय क्षेत्रों में मणिपुरी बांज के पौधरोपण के बाद कास्तकारों की संख्या में बढ़ोतरी तो होगी हीए रेशम का उत्पादन भी बढ़ेगा। तसर कोयों का उत्पादन अभी तक केंद्रीय रेशम बोर्ड की भीमताल इकाई द्वारा किया जाता था। राज्य रेशम विभाग द्वारा पहली बार इसका उत्पादन किया जा रहा है। गढ़वाल के श्रीनगर के पास मलेथा में बिना किसी सरकारी मदद के राज्य में शहतूत की सबसे ज्यादा 11 लाख 78 हजार पौध तैयार करने वाले कृषक अनिल किशोर जोशी को दिल्ली में पर्यावरण रत्न से सम्मानित किया गया। विश्वमित्र परिवार के दिल्ली में आयोजित विश्व प्रकृति महोत्सव के तहत आयोजित 18वें भूमण्डलीय रत्न सम्मान समारोह में जोशी को सम्मानित किया गया। जोशी ने पांच साल में पूरे राज्य में बहुउपयोगी शहतूत के एक करोड़ पौधे लगाने का संकल्प लिया है।

कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में जानवरों के लिए चारे की समस्या हल होने के साथ रेशम उत्पादन में मदद मिलेगा। यह पहाड़ से पलायन को रोकने में भी मदद करेगा। जोशी ने बताया कि वृक्षमित्र परिवार के साथ मिलकर बिना सरकारी सहायता के पूरे राज्य में विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में शहतूत की फसल तैयार करेंगे। जोशी को अब तक कृषि और बागवानी में विशेष सेवाओं के लिए देश.विदेश में कई पुरस्कार हासिल हो चुके हैं केंद्रीय मंत्रिमंडल ने रेशम उद्योग के विकास के लिये एकीकृत योजना को मंज़ूरी दी है। इससे 2020 तक उच्च गुणवत्ता वाले रेशम बाईवोल्टाइन के उत्पादन में 62 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है।

केंद्रीय वस्त्र मंत्रालय के मुताबिक़ भारत 2020 तक रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर हो जाएगा। मल्टीवोल्टाइन रेशम पीले रंग का होता है और इसे वर्ष भर प्राप्त किया जा सकता है। बाइवोल्टाइन रेशम सफ़ेद रंग का होता है और यह बहुत ही नरम होता है। इसे सबसे अच्छी गुणवत्ता वाला रेशम माना जाता है। विश्व का 90 प्रतिशत से भी अधिक रेशम एशिया में उत्पादित होता है। रेशम उत्पादन के मामले में भारत, चीन के बाद द्वितीय स्थान पर है और साथ ही भारत विश्व में रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है।

भारत में पूर्वोत्तीर राज्यों जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड एवं छत्तीसगढ़ के लाभार्थियों के मामले में केंद्र सरकार लागत का 80 प्रतिशत वहन करेगी। उत्तराखंड के गढ़वाल एवं कुमायूं दोनों ही क्षेत्रों में जलवायु उत्तरी.पूर्वी क्षेत्र के समान है क्योंकि यह उत्तरी.पश्चिमी हिमालय में औसत समुद्र तल स्तर से 800-900 मीण् ऊपर है। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा 1000-3000 मिमी वर्ष है। साथ ही अधिकतम तापक्रम 38 है और न्यूनतम 4 जबकि सापेक्ष आर्द्रता का परास 50-95 प्रतिशत है जो मूंगा रेशम की आतिथेय प्रजातियों की वृद्धि के लिए अत्यंत अनुकूल है, जो असम राज्य की तुलना में अधिक सफलतापूर्वक बढ़ते हैं।

इस प्रकार उत्तराखंड राज्य में मूगा रेशम के उत्पादन की भरपूर सम्भावनाएं हैं क्योंकि मूगा रेशम की दोनों ही आतिथेय जातियां कुल क्षेत्र के 0.01 प्रतिशत को आच्छादित करती हैं लेकिन वर्तमान में अज्ञानतावश यह प्रजातियां या तो पशु चारे अथवा ईंधन के रूप में उपयोग की जाती है। ऐसी को यदि बागवानी रोजगार से जोड़े तो अगर ढांचागत अवस्थापना के साथ बेरोजगारी उन्मूलन की नीति बनती है तो यह पलायन रोकने में कारगर होगी उत्तराखण्ड हिमालय राज्य होने के कारण बहुत सारे बहुमूल्य उत्पाद जिनकी अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अत्यधिक मांग रहती है।

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