Tuesday, April 30, 2024
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बालक श्रीराम ने माता कौशिल्या को कराया ब्रह्माण्ड का दर्शन

दुबौलिया । श्रीरामकथा मनमोहक, भवभयतारक व मर्यादापूर्वक मानव जीवन जीने का प्रधान साधन है। श्रीराम बाल्यावस्था से ही बड़े ही तेजस्वी थे। वे बाललीला से सबको आनंदित करते रहते थे। यह सद् विचार कथा व्यास स्वामी स्वरूपानन्द जी ने 9 दिवसीय संगीतमयी श्रीराम कथा दुबौलिया कस्बे के राम विवाह मैदान में पांचवे दिन व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि रामजी का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ। इसके बाद गुरु आश्रम में उन्होंने अल्प समय में ही सभी कलाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया। उन्होंने नामकरण के बाद प्रभु के मनोहर बाल रूप का वर्णन किया। व्यास जी ने बताया कि प्रभु श्रीरामचन्द्र ने बाल क्रीड़ा की और समस्त नगर निवासियों को सुख दिया। कौशल्याजी कभी उन्हें गोद में लेकर हिलाती-डुलाती और कभी पालने में लिटाकर झुलाती थीं । कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई। निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा।
प्रभु की बाल लीला का वर्णन करते हुए महात्मा जी ने कहा कि राजा दशरथ के बुलाने पर भी श्रीराम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न नहीं आते। बाद में आकर उनकी गोदी में बैठकर सुख पाते हैं। कथा को विस्तार देते हुये महात्मा जी ने कहा कि एक बार माता कौशल्या ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृंगार करके पालने पर पौढ़ा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान रंगनाथ की पूजा के लिए स्नान किया, पूजा करके नैवेद्य चढ़ाया और स्वयं वहां गई, जहां रसोई बनाई गई थी। फिर माता पूजा के स्थान पर लौट आई और वहां आने पर पुत्र को भोजन करते देखा। माता भयभीत होकर पुत्र के पास गई, तो वहां बालक को सोया हुआ देखा। फिर देखा कि वही पुत्र वहां भोजन कर रहा है। उनके हृदय में कंपन होने लगा। वह सोचने लगी कि यहां और वहां मैंने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है? प्रभु श्री रामचन्द्रजी माता को घबराया हुआ देखकर मधुर मुस्कान से हंस दिए फिर उन्होंने माता को अपना अखंड अद्भूत रूप दिखलाया, जिसके एक-एक रोम में करोड़ों ब्रह्माण्ड लगे हुए हैं माता का शरीर पुलकित हो गया, मुख से वचन नहीं निकलता। तब आँखें मूंदकर उसने रामचन्द्रजी के चरणों में सिर नवाया। माता को आश्चर्यचकित देखकर श्री रामजी फिर बाल रूप हो गए। श्रीराम की बाल लीला देखने के लिये भगवान शिव, काक भुसुण्डि के साथ ही अनेक देवी देवता, अध्योध्या धाम पहुंचे और इसका सुख प्राप्त किया।
श्रीराम कथा के पांचवे दिन कथा व्यास का विधि विधान से मुख्य यजमान संजीव सिंह ने पूजन किया। आयोजक बाबूराम सिंह, अनिल सिंह, कृष्णदत्त द्विवेदी, सुनील सिंह, अनूप सिंह, जसवंत सिंह, रामू, पंकज सिंह, कमला प्रसाद गुप्ता, राधेश्याम मिश्र, सत्यनरायन द्विवेदी, राधेश्याम मिश्र, गोरखनाथ सोनी, अजय सिंह, अभिषेक सिंह, अरूण सिंह, विक्रम प्रताप सिंह, हर्षवर्धन, महिमा सिंह, विभा सिंह, इन्द्रपरी सिंह, शीला सिंह, सोनू सिंह, हर्षित, वर्धन, दीक्षा सिंह मौजूद रहे

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