प्रो. नीरज खरे द्वारा संपादित पुस्तक ‘हिन्दी कहानी वाया आलोचना’का हुवा लोकार्पण
बीएचयू : “प्रेमचंद ने हिंदी कहानी के लिए जो उपजाऊ जमीन तैयार की उस पर हिंदी कहानी की फसल आज तक लहलहा रही है। प्रेमचंद और उनके समकालीन जयशंकर प्रसाद ने हिंदी कहानी का जो पौधा लगाया था। वह आज किस कदर छायादार और फल-फूल देने वाला है, वह नीरज खरे द्वारा संपादित किताब को पढ़ते हुए बार बार देखा जा सकता है।” यह उदगार राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा राधाकृष्णन सभागार, कला संकाय, बी एच यू में आयोजित पुस्तक प्रदर्शनी में हिन्दी विभाग बी एच यू के प्रोफ़ेसर नीरज खरे की संपादित पुस्तक ‘हिन्दी कहानी वाया आलोचना’ के लोकार्पण समारोह एवं परिचर्चा में प्रो. बलिराज पांडेय ने कही। उन्होंने कहा कि यह पुस्तक कथा आलोचना को समृद्ध बनाती है, इसमें बीसवीं सदी की हिंदी की बहुचर्चित 70 कहानियों पर 45 आलोचकों द्वारा मीमांसा की गई है।
पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए प्रो. सुरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि इस किताब की भूमिका में कथा आलोचना का साफ विजन दिखता है। संपादक हिंदी कहानी की विषयगत विविधता को भी रेखांकित करने में सफल रहे हैं। प्रो. खरे ने नया आलोचकीय मॉडल पेश किया है। उन्होंने कहानी आलोचना के चले आ रहे हैं पैटर्न को तोड़ते हुए नया पैटर्न बनाया है, साथ ही हिंदी कहानी को आलोचना के पुराने फ्रेम से निकाल कर मुक्त किया है, जो 70 साल की काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की आलोचना की कड़ी का एक आयाम है। विशिष्ट अतिथि प्रो. विजय बहादुर सिंह ने हिंदी कहानी की परंपरा का जिक्र करते हुए इस किताब को महत्वपूर्ण और इसकी उपयोगिता को निर्विवाद बताया।
वर्तमान साहित्य के संपादक डॉ. संजय श्रीवास्तव ने कहा कि किताब की भूमिका और उसके उपशीर्षकों के बहाने अपनी बात रखते हुए कहा कि नीरज खरे ने हिंदी कहानी के सौ साल से अधिक के समूचे परिदृश्य को, उसके सभी आंदोलनों, विभिन्न कथा प्रविधियों पर विस्तार से विचार किया है। उनकी भूमिका पढ़ना हिंदी कहानी के सघन संक्षिप्त इतिहास को पढ़ने जैसा है। यह कथा आलोचना की संभावनाओं की तरफ भी इशारा करती है। प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर ने प्रेमचंद से लेकर आज तक की कथा परंपरा और कथा प्रविधियों पर विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि कहानी जैसी समृद्ध विधा पर केंद्रित यह किताब हिंदी की प्रतिनिधि कहानियों का मूल्यांकन और आलोचना की समृद्धि को भी रेखांकित करती है।
इस अवसर पर संपादकीय वक्तव्य देते हुए प्रो. नीरज खरे ने कहा कि किताब के लिए कहानियां चुनते हुए यह बात लगातार ध्यान में रही कि हिंदी कहानी की समूची यात्रा का सघन परिचय तो मिले ही, इसके साथ साथ इसमें वे सभी सवाल भी उपस्थित हो सकें जिनसे बीसवीं सदी का भारतीय समाज और हिंदी कहानी भी जूझती रही है। उन्होंने किताब में शामिल सभी आलोचकों को भी धन्यवाद देते हुए कहा कि यह उनकी आलोचना दृष्टियों का भी बेहतर संकलन है। शोध छात्र दीपेश मिश्र ने कहा कि इस किताब की प्रासंगिकता यह है कि इसमें कहानियों की एक विशाल दुनिया के बहाने आलोचना और कहानी के बीच एक सुंदर संवाद है। खुशी की बात है कि यह संवाद अनेक आलोचकों द्वारा अनेक आलोचना पद्धतियों के साथ किया गया है। पुस्तक कहानी आलोचना की परंपरा की एक अनूठी पुस्तक है, इसके आलेख नवीन आलोचकीय दृष्टि अपने पाठकों, विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों को प्रदान करते हैं।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत मनोज पांडेय ने किया। राजकमल प्रकाशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी आमोद माहेश्वरी ने धन्यवाद देते हुए कहा कि राजकमल प्रकाशन समूह अच्छी किताबों के प्रकाशन और उन्हें पाठकों के बीच बार बार लेकर जाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारे इस अभियान में बनारस के विद्वान अध्यापकों, विद्यार्थियों और संस्कृतिकर्मियों का सहयोग और भागीदारी मिली है, वह अभिभूत करने वाली है। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. महेंद्र प्रताप कुशवाहा ने किया। इस अवसर पर प्रो. आशीष त्रिपाठी, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, डॉ विंध्याचल यादव, डॉ रवि शंकर सोनकर, राजीव वर्मा एवं अन्य अध्यापकों सहित बड़ी तादाद में छात्र-छात्राएं मौजूद थे।