मिल्कीपुर(अयोध्या)।यह एक विषाणु जनित रोग है, जो लंपि स्किन डिजीज वायरस से होता है और गाठदार त्वचा से पहचाना जाता है। यह मुख्यता गाय और भैंस की बिमारी है। यह बीमारी मक्खी, मच्छर तथा जूं के काटने से अथवा दूषित चारा के माध्यम से एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है। आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के पशु विकृती विभाग पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय के पशु विकृति विभाग
के डॉ राकेश कुमार गुप्ता ने बताया कि भारत में इस बीमारी का पहला मामला 2019 में ओडिशा में आया था। भारत में यह रोग लगभग 16 राज्यों में फैल गया है। राजस्थान राज्य में तो हजारों पशुओं की मृत्यु हो चुकी है।
लक्षण – पशु के सिर और गर्दन पर गांठ बन जाती है ,जो धीरे धीरे पूरे शरीर में फैल जाती है। गांठ बडा होने लगता है और घाव के रूप मे परिवर्तित हो जाता है। बीमार पशुओं में बुखार रहता है और दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन की क्षमता घटने लगती है। इस रोग का मृत्यु दर 10 प्रतिशत से भी कम है परन्तु सही समय पर इलाज न मिलने से पशु की मृत्यु भी हो जाती है। जिससे पशुपालकों को आर्थिक घाटा सहना पड़ता है।
उपचार – कोई प्रमुख इलाज नही है किंतु ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक वा नॉन स्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लेमेटरी ड्रग्स को उपयोग में लाकर पशु को बचाया जा सकता है। गांठ से उत्पन्न हुए घाव को लालदवा से साफ कर एंटीसेप्टिक मलहम लगाकर संक्रमण को कम किया जा सकता है।
रोकथाम – रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए। पशुओं में बकरी पॉक्स यानी बकरी चेचक का टीका अवश्य लगवाएं। जो कि पशुओं को इस बिमारी से बचाने का प्रमुख उपाय माना जा रहा है। मच्छर मक्खी तथा जूं को मारने के लिए कीटनाशक का छिड़काव पशु के बाड़े में नियमित रुप से करें। पशु के आस पास साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें।
रोग के लक्षण दिखने पर तुरंत अपने पशुचिकत्सक से संपर्क करें। मृतक पशु को गड्ढा खोदकर चूना व