



जानिए,आजादी के हुए 75 वर्ष तो बिहार विधानसभा भवन कैसे हुआ 100 साल का
विश्व में सबसे पहले लोकतांत्रिक व्यवस्था का प्रमाण रखने वाले बिहार की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक संस्था बिहार विधानसभा भवन ने अपने गौरवशाली इतिहास के साथ 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं, जबकि देश अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मना रहा है। ऐसे में यह जानना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि आखिर देश की आजादी के 75 वर्ष में ही बिहार विधानसभा भवन 100 साल का कैसे हो गया। आइए जानते हैं इसके बारे में…
बिहार विधानसभा भवन के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में 2021 से ही बिहार विधानसभा शताब्दी समारोह शुरू हो चुका है। केवल इतना ही नहीं बिहार की राजधानी पटना में विधानसभा भवन के सौ वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 40 फीट ऊंचे शताब्दी स्मृति स्तंभ का निर्माण हुआ है, जिसका लोकार्पण पीएम मोदी ने 12 जुलाई मंगलवार शाम बिहार की राजधानी पटना में स्थित विधानसभा भवन परिसर में किया। ऐसे में बिहार विधानसभा के अपने ऐतिहासिक फैसलों से भरे सफर और 100 साल पूरे करने के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानना भी रोचक होगा। तो चलिए शुरू करते हैं…

100 वर्ष का हुआ बिहार विधानसभा भवन
बिहार विधानसभा भवन 100 वर्ष का हो चुका है। दरअसल, पहले बिहार परिषद का अपना कोई सचिवालय या सभागार नहीं हुआ करता था। इसलिए सचिवालय के अभाव में इसकी बैठकें अलग-अलग जगहों पर होती रहीं। इसके पश्चात बंगाल से अलग होने के बाद परिषद के लिए सचिवालय की जरूरत आन पड़ी। तत्पश्चात, मौजूदा विधान मंडल भवन को आकार दिया गया।
1920 में यह अस्तित्व में आया, तब वाल्टर मॉड सदन के मुखिया (अध्यक्ष) थे। हालांकि उस समय विधानसभा सदस्यों को चुनने के वोटिंग राइट केवल कुछ ही लोगों तक सीमित हुआ करते थे। सदन के सदस्यों को कुल 2,404 लोग चुनते थे, बाद में इनकी संख्या तीन लाख से अधिक हो गई जिनमें यूरोपियन, जमींदार और विशेष निर्वाचन क्षेत्र के वोटर भी शामिल थे।
बिहार विधानसभा भवन में इतालवी टच
बिहार विधानसभा भवन में हमें इतालवी कलाकृति का टच देखने को मिलता है। दरअसल, यह इमारत इतालवी पुनर्जागरण शैली में तैयार की गई है। इसमें समानुपाति संतुलन दिखता है। लंबे-लंबे गोलाकार स्तंभ और अर्द्धवृत्ताकार मेहराब इसकी खूबसूरती को और बढ़ाते हैं। इस भवन में एक निश्चित अंतराल पर कट मार्क हैं, जो इसे बेहद खूबसूरत बनाते हैं। विशेषज्ञों की नजर में यह इंडो-सारसेनिक शैली का विस्तार है। विधानसभा सदन का कार्यवाही हॉल अर्द्धगोलाकार शक्ल में है। विधानसभा परिसर में तीन हॉल, 12 कमरे हैं। वास्तुविद् ए.एम. मिलवुड ने बिहार विधानसभा भवन की डिजाइन तैयार किया था। इसकी आंतरिक संरचना 60 फीट लंबी और 50 फीट चौड़ी है। विधानसभा भवन के अगले हिस्से की लंबाई 230 फीट है। विधान मंडल के भवन को 1935 के अधिनियम के बाद दो हिस्सों में बांटा गया। पहले हिस्से में विधानसभा और दूसरे में विधानपरिषद बनी।
खास विशेषता
आर्किटेक्ट ए.एम. मिलवुड की देख रेख में बना यह विधानसभा भवन इतालवी रेनेसां शैली में होने के कारण कई मायने में बेमिसाल है। इस इमारत में समानुपातिक गणितीय संतुलन के साथ ही सादगी व भव्यता दोनों का समागम दिखता है। अर्द्ध वृताकार मेहराब व गोलाकार स्तंभ इसकी खास विशेषता है, जो रोमन शैली से प्रभावित है। विधानसभा का सभा कक्ष आयताकार ब्रिटिश पार्लियामेंट से इतर रोमन एम्फीथियेटर की तर्ज पर अर्द्ध गोलाकार शक्ल में बना है। विधानसभा भवन के अगले हिस्से पर जो प्लास्टर किया गया है, उस पर एक निश्चित अंतराल पर कट मार्क बनाया गया है, जो इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाता है।
1921 में विधानसभा भवन में बैठक हुई शुरू
बिहार और उड़ीसा प्रांत को 1920 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद 07 फरवरी, 1921 को विधानसभा के नव निर्मित भवन में बैठक शुरू हुई। वर्तमान में 17 वीं विधानसभा का कार्यकाल चल रहा है। आजादी के पहले और बाद में यह भवन कई राजनीतिक बदलावों और उलटफेरों का गवाह बन चुका है। भवन ने कई मुख्यमंत्रियों और विधानसभा अध्यक्षों का कार्यकाल भी देखा है। वक्त के साथ विधानसभा भवन में भी कई बदलाव किए गए हैं लेकिन इसकी मूल संरचना के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई।
243 है विधानसभा सदस्यों की संख्या
1935 में पारित अधिनियम के तहत बिहार और उड़ीसा को अलग राज्य बनाया गया, तब बिहार में विधानमंडल के तहत दो सदनों, विधान परिषद और विधानसभा की व्यवस्था अस्तित्व में आई। 1936 में उड़ीसा भी बिहार से अलग हो गया। इस लोकतांत्रिक संस्था के विकास को इससे ही समझा जा सकता है कि आज सात करोड़ से अधिक मतदाता विधानसभा के 243 सदस्यों को चुनते हैं। झारखंड के अलग होने के पहले बिहार विधानसभा के सदस्यों की संख्या 324 थी, जो विभाजन के बाद 243 रह गई।
विधानसभा के कई फैसलों ने दिखाई देश को राह
बिहार विधानसभा ने अपने ऐतिहासिक फैसलों से समय-समय पर पूरे देश को राह दिखाई है। यहां जमींदारी प्रथा के उन्मूलन (Abolition of Zamindari) का बड़ा फैसला लिया गया। महिलाओं को समानता का हक दिलाने का कानून बना। आजादी के तुरंत बाद 1947 में ही पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह ने भूमिहीन गरीबों के लिए ‘बिहार राज्य वास भूमि अधिनियम’ पारित करा पूरे देश के सामने मिसाल रखी थी। आगे 1950 में देश में पहली बार जमींदारी उन्मूलन का कानून बिहार में ही पारित हुआ था। यही कानून केंद्र सरकार द्वारा आगे पारित चकबंदी कानून की प्रेरणा बना, जिसमें जमीन रखने की अधिकतम सीमा तय की गई।
विधानसभा से पारित महत्वपूर्ण फैसले:
• 1947 में पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में बिहार राज्य वास भूमि अधिनियम बना
• 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेतृत्व में बिहार पंचायती राज अधिनियम 2006 बना
• सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 33 फीसदी का आरक्षण देने का प्रस्ताव पास हुआ
• 2016 में शराबबंदी का कानून विधानसभा से पास करके बनाया गया
• 2019 में जल जीवन हरियाली अभियान को विधानसभा में चर्चा के बाद शुरू किया गया
• बिहार लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम व बिहार लोक शिकायत निवारण अधिकार अधिनियम पास हुआ
पंचायती राज में महिला आरक्षण का अगुआ बना बिहार
बिहार विधानसभा पंचायती राज में महिला आरक्षण की व्यवस्था की गई है। पंचायती राज में महिलाओं को 50% आरक्षण देने के लिए साल 2006 में बिहार पंचायती राज अधिनियम पारित किया गया। ऐसा कानून बनाने वाला बिहार पहला राज्य बना। बाद में इसे देश के कई अन्य राज्यों ने भी लागू किया। साल 2019 में सरकारी नौकरियों में भी महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। इन फैसलों से महिला सशक्तीकरण को बल मिला।
बिहार ने शराबबंदी कानून से देश को दिखाई राह
महिलाओं पर घरों में भी अत्याचार होता रहा है। इसका एक बड़ा कारण शराब को माना जाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साल 2016 के 30 मार्च को विधानसभा में शराबबंदी (Prohibition) का ऐतिहासिक कानून बनाया। वर्तमान में बिहार पूर्ण शराबबंदी वाला राज्य है। शराबबंदी कानून पूरी तरह लागू करने की परेशानियाें तो आईं लेकिन इन सबके बीच इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि इससे महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है।
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