बीएचयू : मीडिया अब मीडिया टेक हो गया है, टेक अब ज्यादा महत्वपूर्ण है : विपुल नागर
जीवन में सभी को नाटक करना चाहिए : डॉ. बाला लखेन्द्र
बीएचयू : काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कामधेनु सभागार में रंगशाला थिएटर ग्रुप, बीएचयू के तत्वाधान में “बनारस, रंगमंच एवं सपनों से परे” विषयक सत्र का आयोजन हुआ। सत्र के मुख्य वक्ता टीवी चैनल कलर्स गुजराती के बिज़नेस एवं क्रिएटिव हेड विपुल कृष्ण नागर रहे। बीएचयू के विभिन्न संकायों एवं विभागों से आये हुए रंगप्रेमी विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए उन्होंने बनारस, रंगमंच, एफ एम रेडियो से लगायत टीवी चैनलों और ओटीटी की दुनिया के अनुभवों को साझा किया। मुख्य वक्ता विपुल ने कहा कि हम सबको खूब पढ़ना, खूब घूमना और सभी से सीखना चाहिए। उन्होंने बताया कि मैं गुजराती परिवार से ताल्लुक रखता था, मेरा परिवार तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले बनारस आकर बसा था।
पक्का महाल के राम घाट के इलाके में पला बढ़ा जहाँ रायकृष्ण दास जैसे विभूति रहा करते थे। यह मेरा सौभाग्य था कि मेरे पिता श्री रमेश कृष्ण नागर रंगमंच में सक्रिय रहें, जिनके सानिध्य से मैंने लगभग तीन साल कि उम्र में अपनी रंगमंच की यात्रा शुरू की। आज मैं जहाँ कहीं भी हूँ उसके मूल में बनारस और रंगमंच ही है। इन्हीं दो बातों के कारण जीवन में सारी सफलता हासिल की है। बनारस में रेडियो मिर्ची के लॉन्चिंग टीम से लेकर उसके यूपी हेड, गुजरात होते हुए मायानगरी मुंबई में रेडियो मिर्ची के नेशनल क्रिएटिव डायरेक्टर तक पहुँचा। उसके बाद मीडियम चेंज करते हुए टीवी और ओटीटी की ओर रूख किया।
टीवी में गया तो जनता के बीच सर्वे कराया कि आज कल किस प्रकार का शो पसंद किया जा रहा। हमारे यहाँ आज भी सास-बहू के शो चाव से देखे जाते हैं, ओटीटी में तरह तरह के शो आ रहे। यह देश बहुत बड़ा है, देश में हर तरह का कंटेंट बन रहा है, और उसे देखने वाले लोग हैं। कई लोग कहते हैं यह मीडियम खत्म हो जाएगा, वो मीडियम खत्म हो जाएगा। मैं कहता हूँ सारे मीडियम रहेंगे। पहले शार्ट वेव और मीडियम वेव रेडियो था फिर एफ एम आया और अब पॉडकास्ट। टेक्नोलॉजी बदली लेकिन साउंड मीडियम यथावत है।
उन्होंने कहा कि आज का मीडिया सिर्फ मीडिया नहीं रहा बल्कि मीडियाटेक हो गया है। टेक अब ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। किन्तु कहानियाँ कही जाती रहेंगी। एक श्रोता के सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कहानियाँ लिखने के लिए किसी नियम की जरूरत नहीं है। नियम है तो उन्हें तोड़िये। आपको जिन कहानियों को लिखने में आनंद आता है लिखिए। कहानियाँ जब आपको अच्छी लगेंगी तब ही आपके पाठकों, आपके दर्शकों को अच्छी लगेंगी। इस अवसर पर उन्होंने श्रोताओं के अभिनय, लेखन आदि से जुड़े कई सवालों का जवाब दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रीय सेवा योजना बीएचयू के संयोजक डॉ. बाला लखेन्द्र ने कहा कि हमें विपुल भाई की सहजता से सीखना चाहिए। उनके सहज स्वभाव एवं निरंतर सीखने की आदत के कारण ही आज वो इस मुकाम तक पहुँचे हैं। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को अपने टैलेंट को निखारने की जरूरत है ना कि पैरवी की। पैरवी की जरूरत उन्हें होती है जिनके पास टैलेंट नहीं होता। उन्होंने विपुल जी के कविताओं पर कहा कि उनकी कविता ‘सुनो बनारस’ सुनिए कितने सुंदर और सहज बिंब है। यह बिंब तभी संभव हैं जब आप अपने अगल-बगल की चीज़ों को ध्यान से देखते समझते हैं।
इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन हर्षित श्याम ने एवं धन्यवाद ज्ञापन रवि कुमार राय ने किया। कार्यक्रम में डॉ. धीरेंद्र कुमार राय, अनुपम, नितिन, अनुराग, ओमप्रकाश, सुकेशी, अभिषेक, सलोनी आदि मौजूद रहे।