Saturday, July 27, 2024
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जगत गुरू श्री हनुमान जी की जयंती पर विशेष लेख : डा0 मुरली धर सिंह (शास्त्री)

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जगत गुरू श्री हनुमान जी की जयंती पर विशेष लेख

हमारी धार्मिक एवं सनातन मान्यताओं के अनुसार सात देवता/महापुरूष अमर है
अश्वत्थामा बलियासो हनुमानश्च विभीषणः। कृपाः परशुरामश्च सप्तैः ते चिरंजीविनाः।।
(सात सनातन प्राणी हैं अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपा और परशुराम-यदि इन नामों का निरंतर ध्यान किया जाए, तो व्यक्ति मार्कंडेय की तरह प्राकृतिक या अप्राकृतिक मृत्यु से सौ साल मुक्त रह सकता है।)

राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता
जै जै जै हनुमान गोसाई, कृपा करहु गुरु देव की नाई

अयोध्या । इस कलयुग में अनेक देवताओं की आराधना/पूजा की जाती है परन्तु सबसे ज्यादा आर्यावर्त क्षेत्र में श्री हनुमान जी की पूजा की जाती है। इनकी जयंती मान्यता के अनुसार साल में दो बार मनायी जाती है पहली जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को तथा दूसरी जयंती कार्तिक मास के कृष्णपक्ष के चतुर्दशी यानी ठीक दीपावली के एक दिन पूर्व मनायी जाती है। अयोध्या धाम में भव्य दीपोत्सव भी इसी चर्तुदशी को मनाया जाता है। अयोध्या धाम का सातवां दीपोत्सव 11 नवम्बर 2023 को मनाया जायेगा।

चैत्र पूर्णिमा 6 अप्रैल को पड़ रही है इसी दिन विश्व की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी भारतीय जनता पार्टी का स्थापना दिवस भी मनाया जायेगा तथा संयोग से इस लेखक का जन्मदिवस भी 06 अप्रैल ही पड़ता है। विशेष रूप से इस लेख को आम वैष्णो भक्तों के लिए समर्पित किया जा रहा है। क्योंकि भगवान राम या कृष्ण का भक्त हनुमान जी के भक्ति/आर्शीवाद के बिना भक्त नही बन सकता क्योंकि भगवान जी स्वयं भगवान शंकर के रूद्रावतार है भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के दशवे अध्याय में बताया है कि रूद्रो में शंकर मैं ही हूं। अर्थात मैं हनुमान ही हूं जो सभी भक्तों को जल्दी से जल्दी मनोकामना पूर्ण करते है।


आखिरकार हनुमान ने सुरसा की बात मान ली और उसका भोजन बनना स्वीकार कर लिया। सुरसा ने ज्यों ही मुंह खोला, पवन पुत्र ने अपना आकार विशाल कर लिया। यह देख सुरसा ने भी अपना आकार बड़ा कर लिया। जब हनुमान ने देखा कि सुरसा ने अपनी सीमा लांघ कर मुंह का आकार और भी बड़ा कर लिया तो वे तत्काल अपने विशाल रूप को समेटते हुये उसके मुंह के अंदर गये और बाहर वापस आ गये। हनुमान के बुद्वि कौशल से प्रसन्न होकर सुरसा ने उन्हें आर्शीर्वाद देते हुये कहा पुत्र तुम अपने कार्य में सफल हो। हनुमान ने अपने शरीर को पहले विशालकाय और फिर एक छोटे रूप से महिमा तथा लधिमा सिद्वि के बल पर किया था। हनुमान रूद्र के ग्यारहवें अवतार माने जाते है। संकटमोचक हनुमान अष्ट सिद्वि और नव निधि के दाता भी है।

हनुमान अणिमा, लधिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, महिमा, इशित्व और वशित्व इन सभी आठ प्रकार की सिद्वियों के स्वामी है। राम जब लक्ष्मण के साथ सीता जी को वन-वन खोज रहे थे तो ब्राहा्रण वेश में हनुमानजी अपनी सरलता, वाणी और ज्ञान से रामजी को प्रभावित कर लेते है। वह वंशीकरण वशित्व सिद्वि है। माता सीता को खोजने के क्रम में जब पवन पुत्र सागर को पार करने के लिए विराट रूप धारण करते है तो उनका यह कार्य महिमा सिद्वि का रूप धारण कर लेता है। इसी प्रकार जब हनुमान सागर पार कर लंका में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़े तो अति सूक्ष्म रूप धर कर अणिमा सिद्वि को साकार किया।

माता सीता को खोजते खोजते जब बजरंग बली अशोक वाटिका में पहुंचे तो उनके लघु रूप बनने में लधिमा सिद्वि काम आयी। इसी प्रकार पवन सुत की गरिमा सिद्वि के दर्शन करने के लिए महाभारत काल में जाना होगा, जब हनुमान महाबली भीम के बल के अंधकार को तोड़ने के लिए बूढ़े बानर का रूप धारण उनके मार्ग में लेट गये थे और भीम उनकी पूंछ को हिला भी नही पायें। इसी प्रकार बाल हनुमान के मन में उगते हुये सूर्य को पाने की अभिलाषा जागी तो उन्होंने उसे पकड़ कर मुंह में रख लिया तो अभिलाषा सिद्वि के दर्शन हुये। प्राकाम्य सिद्वि को समझने के लिए पवन पुत्र की राम के प्रति भक्ति को समझना होगा। रामभक्त हनुमान ने राम की भक्ति के अलावा और कुछ नही चाहा और वह उन्हें मिल गयी। इसलिए कहा जाता है कि हनुमान की कृपा पाए बिना राम की कृपा नही मिलती।

पवन पुत्र की राम के प्रति अनन्य भक्ति का ही परिणाम था कि उन्हें प्रभुत्व और अधिकार की प्राप्ति स्वतः ही हो गयी इसे ही इंशित्व सिद्वि कहते है। इसी प्रकार नव रत्नों को ही नौ निधि कहा जाता है। ये है-पद्य महापद्य, शंख, मकर, कच्छप, मुकुंद, कुंद, नील और खर्ब। सांसारिक जगत के लिए ये निधियां भले ही बहुत महत्व रखती हों, लेकिन भक्त हनुमान के लिए तो केवल राम नाम की मणि ही सबसे ज्यादा मूल्यवान है। इसे इस प्रसंग से समझा जा सकता है। रावध वध के पश्चात एक दिन श्रीराम सीताजी के साथ दरबार में बैठे थे। उन्होंने सभी को कुछ न कुछ उपहार दिय।

श्रीराम ने हनुमान को भी उपहारस्वरूप मूल्यवान मोतियों की माला भेंट की। पवन पुत्र उस माला से मोती निकाल निकालकर दांतों से तोड़ तोड़कर देखने लगे। हनुमान के इस कार्य को देखकर भगवान राम ने हनुमान से पूछा, हे पवन पुत्र आप इन मोतियों में क्या ढूंढ रहे हो? पवन पुत्र ने कहा, प्रभु में आपको और माता को इन मोतियों में ढूंढ रहा हूं। लेकिन इसमें आप कही नही दिखाई दे रहे है और जिस वस्तु में आप नही, वह मेरे लिए व्यर्थ है। यह देख एक दरबारी ने उसने कहा पवन पुत्र क्या आपको लगता है कि आपके शरीर में भी भगवान है? अगर ऐसा है तो हमें दिखाइए। नही तो आपका यह शरीर भी व्यर्थ है। यह सुनकर हनुमान ने भरी सभा में अपना सीना चीरकर दिखा दिया। पूरी सभा यह देखकर हैरान थी कि भगवान राम माता जानकी के साथ हनुमान के हृदय में विराजमान है।


नोट-लेखक पूर्व में भारत सरकार और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारी है तथा इन्होंने बान प्रस्थ आश्रम के आचारण एवं विचार को अपना लिया है तथा ईस्कान के पैट्रान भी है तथा अयोध्या में साधनाश्रम अयोध्या धाम के सहसंस्थापक है तथा लखनऊ गोमती नगर में अयोध्या धाम भवन के भी संस्थापक है तथा छात्र जीवन में काशी, प्रयाग, भोपाल, बिहार अनेक स्थानों पर रहे है तथा छात्र संघों के पदाधिकारी भी रहे है। अब ज्यादा समय अयोध्या धाम में ही व्यतीत करते है तथा अनेक स्वयंसेवी संगठनों आश्रमों से जुड़े है।

डा0 मुरली धर सिंह (शास्त्री)
उप निदेशक सूचना, अयोध्या धाम एवं प्रभारी मीडिया सेन्टर लोकभवन लखनऊ
मो0-7080510637/9453005405
ईमेल- thmurli64@gmail.com

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