Tuesday, October 15, 2024
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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रशासनिक सुधार के लिए गठित समिति ने सौंपी अपनी रिपोर्ट

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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रशासनिक सुधार के लिए गठित समिति ने सौंपी अपनी रिपोर्ट

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· विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे में सुधार तथा शैक्षणिक उत्कृष्टता हासिल करने के लिए की 64 सिफारिशें

· विश्वविद्यालय में सुचारू कामकाज सुनिश्चित करने के लिए परामर्श आधारित दृष्टिकोण तथा प्रभावी निगरानी व्यवस्था की बताई ज़रूरत

· पुराछात्रों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए और अधिक प्रयासों तथा सामुदायिक हित की गतिविधियों पर भी सिफारिश

वाराणसी : शैक्षणिक, अनुसंधान तथा प्रशासनिक उत्कृष्टता हासिल करने के उद्देश्य से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने अपने प्रशासनिक व वित्तीय ढांचे में सुधार की एक वृहद कवायद शुरु की है। इस संदर्भ में कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने भारत सरकार के पूर्व शीर्ष व अनुभवी अधिकारियों की एक समिति गठित की थी, जिसे बीएचयू की कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए व्यवस्थागत चुनौतियों के समाधान हेतु सिफारिशे देने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। भारत सरकार में पूर्व सचिव श्री पवन अग्रवाल की अध्यक्षता वाली इस समिति में पूर्व उप नियंत्रक व महालेखापरीक्षक, भारत सरकार, श्री पराग प्रकाश तथा शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, में पूर्व संयुक्त सचिव, श्री आर. डी. सहाय सदस्य थे। पूर्व संयुक्त कुलसचिव डॉ. सुनीता चन्द्रा को समिति का सचिव बनाया गया था।

प्रशासनिक सुधार समिति ने विश्वविद्यालय के सभी विभागों, इकाइयों, तथा केन्द्रों में विभिन्न हितधारकों से व्यापक व विस्तृत चर्चा की और व्यवस्थागत चुनौतियों व समस्याओं को लेकर उनसे सुझाव व संभावित समाधान लिये। समिति के सदस्यों ने सभी संस्थानों, संकायों, कार्यालयों तथा दक्षिणी परिसर का दौरा किया तथा विश्वविद्यालय के सभी भवनों, सुविधाओं व प्रक्रियाओं को देखा व समझा।

विश्वविद्यालय के केन्द्रीय कार्यालय स्थित समिति कक्ष संख्या 1 में आयोजित एक बैठक में समिति ने अपनी रिपोर्ट कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन को सौंपी। इस दौरान समिति की सिफारिशों के क्रियान्वयन पर आगे की राह को लेकर विचार विमर्श भी हुआ, जिसमें विश्वविद्यालय के प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित रहे।

कामकाज में कुशलता, जवाबदेही, पारदर्शिता, निष्पक्षता लाने तथा सेवाएं प्रदान करने, समन्वय व उत्पादकता में बेहतरी के लिए प्रशासनिक सुधार समिति ने कुल 64 सिफारिशें की हैं। समिति द्वारा कामकाज में परामर्श आधारित दृष्टिकोण अपनाने तथा प्रभावी निगरानी व्यवस्था स्थापित करने की बात कही गई है, जिसमें साप्ताहिक रूप से आंतरिक निगरानी तथा मासिक रूप से बाह्य निगरानी की जाए।

समिति ने अपनी सिफारिशों में डीन (शैक्षणिक मामले), डीन (अनुसंधान एवं विकास) तथा डीन (प्रौद्योगिकी एवं डिजिटल लर्निंग) के तीन नए पद बनाने की सिफारिश की है, जिससे शैक्षणिक मामलों से जुड़े विभिन्न पक्षों में सुधार लाए जा सकें। समिति ने स्थान, संसाधन व कर्मियों के संदर्भ में आने वाली चुनौतियों व सीमाओं का उल्लेख करते हुए संसाधनों के प्रभावी व विवेकपूर्ण प्रयोग पर बल दिया है। समिति ने कहा है कि ऐसी गतिविधियों व इकाइयों की समीक्षा की जानी चाहिए जो विश्वविद्यालय की मूल गतिविधियों व कार्यों में कोई योगदान नहीं दे रही हैं।

समिति ने महसूस किया कि प्रशासन के विभिन्न सोपानों में दोहरापन है, जिनसे निर्णय प्रक्रिया में विलंब होता है, ऐसे में प्रशासनिक ढांचे के सरलीकरण की आवश्यकता है। समिति ने सुझाव दिया कि विश्वविद्यालय में डेटा/सूचना का केन्द्रीय स्तर पर प्रबंधन हो, जिससे विलंब व त्रुटियों से निपटा जा सके। समिति की प्रमुख सिफारिशों में आधुनिक प्रबंधन तरीकों के इस्तेमाल, आई टी आधारित प्रक्रियाओं व व्यवस्था के क्रियान्वयन, डिजिटल लर्निंग, डिजिटल लाइब्रेरी तथा आईटी सुरक्षा शामिल हैं। समिति ने सुझाव दिया कि इस दिशा में विश्वविद्यालय को आवश्यकतानुसार निवेश करना चाहिए।

समिति ने कर्मियों को अधिक कुशल बनाने तथा अपने कार्य के प्रति उत्प्रेरित रहने के लिए क्षमता निर्माण गतिविधियों की वकालत की और कहा कि लिपिकीय कर्मियों के कौशल निर्माण के लिए प्रशिक्षण व उत्साहवर्धन की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही शैक्षणिक व प्रशासनिक कर्मियों के लिए बाहरी संस्थानों में जाकर कामकाज के उत्तम तरीके सीखने के लिए शैक्षणिक यात्राओं का भी सुझाव दिया गया है।

समिति की रिपोर्ट के अनुसार विश्वविद्यालय में मौजूद अनुसंधान क्षमता का भरपूर उपयोग नहीं हो पा रहा है। ऐसे में अन्तर्विषयी तथा बहुविषयी अनुसंधान व गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए विस्तृत रूप से काम करने की ज़रूरत है। समिति के अनुसार विश्वविद्यालय में मौजूद विविध विशेषज्ञता तथा संसाधनों का प्रयोग जटिल समस्याओं के नवोन्मेषी समाधानों के लिए होना चाहिए।

वित्तीय अनुशासन, प्रभावी प्रबंधन तथा व्यय में पारदर्शिता के परिप्रेक्ष्य में समिति ने बजट निर्माण को सुव्यवस्थित बनाने की बात कही है। साथ ही व्यय के संदर्भ में सतर्कता बरतने, संसाधनों का क्षय रोकने एवं संसाधन जुटाने की सलाह दी गई है।

समिति ने कहा है कि विश्वविद्यालय को अपने विशाल पुराछात्र नेटवर्क से बेहतर ढंग से जुड़ना चाहिए। साथ ही साथ सामुदायिक हित की गतिविधियों पर भी ज़ोर देना चाहिए। सिफारिशों के अनुसार बीएचयू को विभिन्न पक्षधारकों के साथ सहयोग कर सामाजिक स्तर पर योगदान की दिशा में काम करना चाहिए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में विद्यार्थियों के पठन अनुभव को बेहतर बनाने, प्लेसमेंट व्यवस्था को अधिक प्रभावी करने एवं विशिष्ट भूमिका वाली इकाइयों को सशक्त बनाने पर विशेष ज़ोर दिया है।

कुलपति प्रो. सुधीर कुमार जैन ने विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली में व्यापक सुधार हेतु सिफारिशें देने के लिए समिति के प्रति आभार जताया। उन्होंने विश्वविद्य़ालय परिवार का आह्वान किया कि वे अपनी प्राथमिकताएं तय करें और संस्थान को शिखर पर ले जाने की दिशा में अपना योगदान दें।

समिति के अध्यक्ष पवन अग्रवाल ने कहा कि ये सिफारिशें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न पक्षधारकों से विस्तारपूर्वक हुई चर्चाओं से मिले सुझावों, सूचनाओं और विचारों के आधार पर ही तैयार की गई हैं। सदस्य पराग प्रकाश ने कहा कि बीएचयू एक विशिष्ट संस्थान है, जिसमें काम करने वालों की संस्थान के प्रति निष्ठा बहुत गहरी है। उन्होंने कहा कि यह निष्ठा ही संस्थान में सुधारात्मक कदमों को मूर्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। आर. डी. सहाय ने कहा कि समिति की सिफारिशें एक जटिल व्यवस्था को सरल व प्रभावी बनाने के लिए अनुकूल आधार मुहैया कराती हैं। उन्होंने अपील की कि रिपोर्ट के क्रियान्वयन के साथ साथ प्रभावी ढंग से निगरानी भी सुनिश्चित की जाए।

इस अवसर पर कुलगुरू प्रो. वी. के. शुक्ला, कुलसचिव प्रो. अरुण कुमार सिंह, वित्ताधिकारी डॉ. अभय ठाकुर, संस्थानों के निदेशक, संकायों के प्रमुख तथा वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।

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