ऑगनवाड़ी कार्यकत्रियों का कृषि विज्ञान केन्द्र पर दो दिवसीय प्रशिक्षण सम्पन्न
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन कार्यरत कृषि विज्ञान केंद्र मसौधा अयोध्या के गृहविज्ञान अनुभाग द्वारा 25 आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों के लिए पोषण वाटिका आधारित पोषण थाली के माध्यम से खाद्य सुरक्षा पर दो दिवसीय प्रशिक्षण का समापन सामुदायिक चिकित्सा केंद्र के अधीक्षक डॉ अंशुमान गुप्ता के द्वारा कार्यकत्रियों को सर्टिफिकेट वितरण द्वारा किया गया । डॉक्टर गुप्ता ने अच्छा पोषण स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी बताया । स्वास्थ्य के साथ-साथ स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देने का ऐलान किया । स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी चंद्रेश जी ने कार्यकत्रियों को स्वस्थ सतरंगी थाली के बारे में बताया जिससे संतुलित आहार में सभी पोषक तत्वों का समावेश कर अपने शरीर व परिवार को स्वस्थ रख सके । आहार में विविधता व विभिन्नता जरूरी है जिससे खाने को ग्रहण करने में विशेष रुचि उत्पन्न हो जाती है ।
प्रशिक्षण का शुभारंभ मुख्य अतिथि के रूप में जिला कार्यक्रम अधिकारी श्री पी के सिंह द्वारा किया गया जिन्होंने कार्यकत्रियों को अपने-अपने ग्रामीण क्षेत्रों में आम जनता को खुद की सब्जियों को उगाने के लिए प्रेरित करने का आह्वान किया । जिनके पास जगह ना हो उनको भी अपने ग्रामीण संसाधनों जैसे बेकार पड़ी पुरानी नाद, बाल्टी, टिन आदि में मिट्टी और खाद मिलाकर कद्दू वर्गीय सब्जियों को लगा देने से परिवार के उपभोग के लिए पर्याप्त सब्जियां मिल सकती है । कुपोषण के संकेतों स्टंटिंग यानी आयु अनुरूप कम ऊंचाई व वेस्टिंग ऊंचाई अनुरूप कम वजन पर भी चर्चा किया । जिसका एकमात्र समाधान अपनी थाली में सब्जियों की मात्रा को बढ़ाना, जिसके लिए पोषण वाटिका को स्थापित करना अत्यंत आवश्यक है । उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के सहयोग से प्रत्येक ब्लॉक में प्रशिक्षण करने का निर्णय लिया ।
केंद्र के अध्यक्ष डॉक्टर एस के यादव ने आए हुए अतिथियों का स्वागत एवं कृषि विज्ञान केंद्र की रूपरेखा का वर्णन करते हुए संतुलित आहार में फल एवं सब्जियों की उपयोगिता बताते हुए वाटिका को स्थापित करना आवश्यक है जिसके लिए बहनों को कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से तकनीकी सहायता हमेशा से मिलती रहेगी । केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ देश दीपक सिंह ने पोषक तत्वों के बारे में विस्तृत वर्णन करते हुए प्रत्येक परिवार को गुणवत्ता युक्त सब्जियों के उत्पादन के लिए देसी गाय रखने की सलाह दी जिससे रसायन मुक्त सब्जियों का उत्पादन कर अपनी पोषण स्तर को अच्छा बनाया जा सके । इस कार्यक्रम के समन्वयक डॉ अर्चना सिंह इस कार्यक्रम का सृजन व संचालन किया गया इसमें उन्होंने मानव पोषण में एवं सब्जियों की महत्ता को बताते हुए भारतीय भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के अनुसार प्रति व्यक्ति को प्रतिदिन 120 ग्राम फल एवं तीन सौ ग्राम सब्जी का सेवन करना चाहिए । तीन सौ ग्राम सब्जियों की मात्रा में 125 ग्राम पत्ते वाली सब्जी से पूरी की जानी चाहिए जबकि फलों एवं सब्जियों की उपलब्धता क्रमशः 80 एवं 120 ग्राम है ।
ग्रामीण अंचलों में इधर उधर बेकार खाली पड़ी जमीन का प्रयोग पोषण वाटिका स्थापित करके किया जा सकता है उस भूमि का उपयोग करके अपनी रसोई के कचरे से खाद बनाकर जैविक रूप से तैयार सब्जियों का सेवन कर हम अपने तथा परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दे सकते हैं जिससे वे स्वस्थ, निरोग व श्रम करके सामूहिक कार्य करने व आपसी सद्भाव की भावना प्रेरित करके आनंद उठाया जा सकता है । कुपोषण की समस्या का समाधान भी हो सकता है । तकनीकी सत्र में डॉक्टर सिंह द्वारा पोषण वाटिका के विभिन्न आयामों जैसे भूमि का चयन, दिशा, जल निकास, कंपोस्ट पिट, सुरक्षा बाढ़, सिंचाई व्यवस्था व पोषण वाटिका के रेखांकन पर विस्तृत चर्चा किया। सहजन के प्रत्येक भाग के महत्व को समझाते हुए उसकी पत्तियों के सेवन करने पर विशेष बल देते हुए आग्रह किया कि एनीमिया, कैल्शियम, आयरन आदि पोषक तत्वों की कमी से होने वाले रोग से बिना पैसे से बचा जा सकता है। कुपोषण से सुपोषण की श्रेणी में इसके सेवन से बहुत जल्दी आया जा सकता है।
केंद्र के नवागंतुक विषय वस्तु विशेषज्ञ उद्यान डॉक्टर पी के मिश्रा ने फलों एवं सब्जियों की खेती पर चर्चा किया। बरसात के समय में मचान पर कद्दू वर्गीय सब्जियों की सलाह दी । फलों के पौधों को कैसे छोटा रखा जाए उसकी भी गुर बताएं । कार्यकत्रियों को भी अपने – अपने शंकाओं का समाधान मिला वह भविष्य में केंद्र पर ही उत्पादित सब्जियों की नर्सरी मिलने का वचन दिया । इस प्रशिक्षण में मसौधा ब्लॉक की 25 आंगनबाड़ियों ने भाग लिया जिसमें संध्या श्रीवास्तव, शन्नो देवी, श्रीमती देवी देवी ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया व कार्यक्रम को सफल बनाया । कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर राम गोपाल ने किया । सफल बनाने में राज नारायण व अवधेश शुक्ला का विशेष योगदान था ।