दुनिया है एक मेला साहब रहने को ना आता कोई। आता खाली हाथ इस जग में खाली ही जाता हर कोई। करता धंधे गोरे काले पैसे पर ना चलता कोई। गढ़ता कितने महल दुमहले दो गज में सिमट जाता हर कोई। करता ईष्र्या एक दूजे से अकेले भी ना रह पाता कोई। लड़ता है जिन बंधु बांधव से उन्हीं के कांधे जाता हर कोई। पैसे को है मीत समझता जीवन खरीद ना पाता कोई। जीवन कटता अलग अलग रह अन्त समय पछताता हर कोई। दुनिया है एक मेला साहब रहने को ना आता कोई।