



छत्तीसगढ़ : राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में बिखरी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा
शहीद वीर नारायण सिंह पर नाटय मंचन, कुडुख, गेडी, गवरसिंग सोन्दो, कमार विवाह नृत्य एवं डण्डार नृत्य की हुई प्रस्तुति
रायपुर(छत्तीसगढ़ ) राजधानी रायपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम साइंस कॉलेज में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजातीय साहित्य महोत्सव राज्य स्तरीय जनजाति नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों की छटा बिखरी। संध्याकाल को आज विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

छत्तीसगढ़ के प्रथम शहीद वीर नारायण सिंह पर नाट्य का मनमोहक मंचन किया गया। अनुसूचित जाति एवं जनजाति विकास मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने नाट्य मंचन के सशक्त प्रस्तुति को देखकर मंत्रमुग्ध हुए और उन्होंने मंच पर पहुंचकर कलाकरों का उत्साहवर्धन भी किया। इस अवसर पर सचिव श्री डी.डी. सिंह, आयुक्त सह संचालक आदिम जाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान श्रीमती शम्मी आबिदी सहित बड़ी संख्या में कलाप्रेमियों ने सांस्कृतिक संध्या का आनंद उठाया।
छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसाइटी जनमंच द्वारा शहीद वीर नारायण सिंह के जीवन पर आधारित नाटक वह प्रथम पुरुष का जीवंत नाट्य मंचन किया गया। इस नाटक की शोध परिकल्पना व लेखक डॉ. देवेश दत्त मिश्र एवं निर्देशन श्रीमती रचना मिश्रा द्वारा की गई है। यह नाटक छत्तीसगढ़ के सोनाखान के जमींदार वीर सपूत शहीद वीर नारायण सिंह पर आधारित है।
वीर नारायण सिंह किस तरह मुश्किल हालात में अपनी जनता के लिए संघर्ष करते हैं और मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से जंग करते हैं, जिसका बखूबी से वर्णन इस नाटक के माध्यम से किया गया। छत्तीसगढ़ की बिंझवार जनजातीय से आने वाले छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी शहीद वीर नारायण सिंह, जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने 10 दिसम्बर 1857 को रायपुर के जयस्तंभ चौक पर सरेआम फॉसी पर लटका कर सजा-ए मौत दी थी।
नाटक के माध्यम से वीर नारायण सिंह की पूरी संघर्ष गाथा को जीवंत प्रस्तुत किया गया है, दुर्भाग्य है कि भारत में अंग्रेजों के खिलाफ बेहद शुरूआती दौर में ही बगावत का बिगुल बजाने वाले इस आदिवासी जमींदार की वीरगाथा इतिहास के पन्नों में ज्यादा पढ़ने को नहीं मिलती, ऐसे में आज की पीढ़ी को इस नाटक के माध्यम से इस महान कांन्तिकारी से रूबरू कराना बहुत जरूरी है।
साथ ही उस काल में इस क्षेत्र के लोगों ने जो संघर्ष किया उसके बारे में एक समझ बनाने की कोशिश इस नाटक के माध्यम से की गई। छत्तीसगढ़ फिल्म एंड विजुअल आर्ट सोसाइटी जनमंच के कलाकारों ने अपने सशक्त अभिनय के माध्यम से वह प्रथम पुरूष नाटक की जीवंत प्रस्तुति दी।
सांस्कृतिक संध्या में सरगुजा जिले के कडुख नृत्य की प्रस्तुति की गई। यह नृत्य प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने व धरती माता की पूजा के उपलक्ष्य में उरॉव जनजाति द्वारा किया जाता है। यह नृत्य करमा अखाडा व सरना पूजा स्थल में करमा और सरहुल नृत्य की सामूहिक गायन शैली में ही कुडुख बोली में किया जाता है। सफेद पगड़ी में मयूर पंख लगाकर इस नृत्य को भादो माह एकादशी के अवसर पर किया जाता है। इसके पश्चात बस्तर जिले के गेड़ी नृत्य का मंचन किया गया। इस नृत्य को मुरिया जनजाति के सदस्य नवाखानी त्यौहार के लगभग एक माह पूर्व से गेड़ी निर्माण प्रारंभ कर सावन मास के अमावस्या (हरियाली त्यौहार) से भादों मास की पूर्णिमा तक करते हैं। मुरिया युवक बॉस की गेड़ी में गोल घेरा में अलग-अलग मुद्रा में नृत्य करते हैं। नृत्य के दौरान युवतियों गोल घेरे में गीत गायन करती है। यह नृत्य सामान्यत 18-20 पुरुष सदस्यों द्वारा किया जाता है। गेंड़ी नृत्य नवाखानी त्यौहार विवाह और मेला-मंडई के अवसर पर किया जाता है। इस तरह गेड़ी नृत्य के बाद दन्तेवाड़ा जिले गवरसिंग (गौरसिंग) नृत्य का मंचन किया गया। यह नृत्य माड़िया जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य है, जो कि फसल कटाई के पश्चात् मेला-मड़ई. धार्मिक उत्सव व जन्म, विवाह एवं सामान्य अवसरों पर गांव में मनोरंजन के लिए किया जाता है। माड़िया जनजाति के सदस्य नृत्य के दौरान पहने जाने वाले गौर सिंग मुकुट को माडिया समुदाय में वीरता तथा साहस का प्रतीक मानते हैं यह नृत्य महिला एवं पुरुषों का सामूहिक नृत्य है।
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सांस्कृतिक कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति के रूप मे गरियाबंद जिले के कमार विवाह नृत्य का मंचन किया गया। यह नृत्य कमार महिला-पुरूषों द्वारा किया जाता है। इस अवसर पर मद्यपान का भी सेवन किया जाता है। यह नृत्य तीर कमान, सुपा एवं टोकनी हाथ में लेकर करते हैं। यह नृत्य कमार जनजाति द्वारा विवाह के अवसर पर किया जाता है। इसके अलावा सुकमा जिले में निवासरत भतरा जनजाति के दल द्वारा डण्डार नृत्य की शानदार प्रस्तुति दी गई। सांस्कृतिक संध्या में अंतिम प्रस्तुति बलरामपुर जिले के सोन्दो नृत्य किया गया। यह नृत्य पौष माह में सरगुजा अंचल के बलरामपुर क्षेत्र में चेरवा, कोड़ाकू, कोरवा जनजाति निवासरत प्रत्येक ग्रामों में निर्धारित रूप से महिला और पुरुष द्वारा किया जाता है। सोंदो नृत्य का आयोजन ग्राम देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए गांव के धार्मिक मुख्या (पुजारी/बैगा) के घर के आंगन में किया जाता है। इस नृत्य में स्त्री-पुरूषों के द्वारा सामान्य वेशभूषा में तीर, धनुष आदि का उपयोग किया जाता है।
इस तरह आज के संध्याकालीन सांस्कृतिक कार्यक्रम में कुल 06 जनजातीय लोक नृत्य एवं शहीद वीर नारायण सिंह पर आधारित नाटक का मंचन किया गया। समापन का मुख्य आकर्षण 21 अप्रैल को साहित्य महोत्सव के समापन अवसर पर सांस्कृतिक – कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण जनजातीय जीवन पर आधारित काव्य नाट्क ‘लमझना’ का मंचन किया जाएगा।
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