मनरेगा के तहत नियोजित श्रमिकों की उपस्थिति अब होगी डिजिटली दर्ज
सरकार मनरेगा को कर रही और पारदर्शी, अब डिजिटल रूप से दर्ज होगी अटेंडेंस
देश के हर सरकारी विभाग से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाएं। सरकार के उन फैसलों में डिजिटल शक्ति का बड़ा रोल है। इसी वजह से आज DBT से जरूरतमंद को पैसे ट्रांसफर करना हो या किसान सम्मान निधि या पीएम गरीब आवास योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी राशि। इन क्रांतिकारी फैसले के बाद अब एक और सेक्टर में डिजिटल इंडिया की एंट्री हो गई है, जिससे गरीबों, श्रमिकों और मेहनतकश मजबूदों के हक का पैसा कोई बिचौलिया या ठेकेदार न खा पाए। जी हां, हम बात कर रहे हैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानि मनरेगा की।
अब डिजिटल रूप से दर्ज होगी अटेंडेंस
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्यरत श्रमिकों की अटेंडेंस अब डिजिटल रूप से दर्ज होगी। केंद्र सरकार ने 1 जनवरी, 2023 से इसे लागू कर दिया है। यानी अब मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज होगी। निश्चित रूप से सरकार के इस कदम से इस योजना में और अधिक पारदर्शिता आएगी। मंत्रालय ने आदेश में कहा है कि डिजिटल रूप से उपस्थिति दर्ज करना अब सभी मनरेगा कार्यस्थलों के लिए अनिवार्य है, चाहे कितने भी कर्मचारी लगे हों। यह नियम 1 जनवरी, 2023 से लागू हो जाएगा।
क्यों लिया गया फैसला?
अब जान लेते हैं, डिजिटल अटेंडेंस का फैसला क्यों लिया गया…दरअसल, अक्सर मनरेगा के तहत फर्जी खातों का मामला सामने आता रहा है, जो बिचौलियों और अधिकारियों के लिए भ्रष्टाचार का स्रोत बन गया है। ऐसे में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भ्रष्टाचार, सही से कार्य न कराने, काम के दोहराव, धन के दुरुपयोग के आरोपों की वजह से इसे अनिवार्य कर दिया है, जिससे की धन का दुरुपयोग भी न हो, काम करने वाले श्रमिकों को पैसे समय पर मिलता रहे।
2021 में हुई थी पायलट चरण की शुरुआत
दरअसल, सरकार ने योजना को और अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से मई 2021 में नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सिस्टम नामक एक मोबाइल एप्लीकेशन यानि NMMS ऐप जारी किया था। केंद्र सरकार ने ऐप के माध्यम से अटेंडेंस दर्ज करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था। 16 मई 2022 से 20 या उससे अधिक श्रमिक जहां कार्य कर रहे हैं..उन सभी कार्यस्थलों के लिए ऐप के माध्यम से अटेंडेंस दर्ज करना अनिवार्य कर दिया गया था। मनरेगा के संबंध में जारी नवीनतम आदेश में डिजिटल अटेंडेंस दर्ज करना अब सभी के लिए अनिवार्य कर दिया गया है है, चाहे कार्यस्थल पर कितने भी कर्मचारी लगे हुए हों।
95% से अधिक का हुआ मनरेगा भुगतान
सरकार के अनुसार मस्टर रोल बंद होने के सोलहवें दिन के बाद देरी के लिए मजदूरी चाहने वाले प्रतिदिन अवैतनिक मजदूरी के 0.05% की दर से मुआवजे का भुगतान प्राप्त करने के हकदार होंगे। बता दें कि मस्टर रोल एक इन्वेंटरी रजिस्टर है। कामगारों की हाजिरी का एक विशेषकर रिकॉर्ड है, जो कि खास कार्य स्थल और एक निश्चित समय अवधि के लिए होता है। मस्टर रोल का इस्तेमाल कार्यक्रम अधिकारी से वेतन भुगतान के लिए, धनराशि मांगने के लिए, रसीद के रूप में किया जाता है। वहीं चालू वित्त वर्ष (18.12.2022 तक) में 15 दिनों के भीतर उत्पन्न भुगतान का प्रतिशत 95.55% है। राज्यसभा में केन्द्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने कहा कि देय होने की तिथि से पंद्रह दिनों की अवधि के बाद मुआवजे के भुगतान में किसी भी देरी पर उसी तरह विचार किया जाएगा, जिस तरह से मजदूरी के भुगतान में देरी की जाती है। भुगतान में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों या एजेंसियों से मुआवजे की राशि वसूल करेगी।
सरकार ने उठाए कई महत्वपूर्ण कदम
केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी नरेगा के तहत श्रमिकों को समय पर मजदूरी का भुगतान सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। आकड़ों के अनुसार वित्त वर्ष 2022-2023 में पांच लाख 9 हजार लोगों ने इस योजना के तहत रोजगार की मांग की, जिसमें सरकार ने त्वरित कर्रवाई करते हुए 5 लाख 8 हजार लोगों रोजगार उपलब्ध करा दिया है। सरकार ने हाल ही में 27 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड प्रबंधन प्रणाली (Ne-FMS) का विस्तार भी किया है।
क्या है मनरेगा योजना
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (महात्मा गांधी नरेगा) एक मांग आधारित मजदूरी रोजगार कार्यक्रम है, जो देश के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवारों की आजीविका सुरक्षा को बढ़ाने के लिए कम से कम एक सौ दिनों का गारंटीकृत रोजगार प्रदान करता है। प्रत्येक परिवार के लिए वित्तीय वर्ष जिसके वयस्क सदस्य स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, सूखा, प्राकृतिक आपदा अधिसूचित ग्रामीण क्षेत्रों में एक वित्तीय वर्ष में 50 दिनों के अतिरिक्त अकुशल मजदूरी रोजगार का प्रावधान है।
मनरेगा डिजिटल अटेंडेस के रास्ते भ्रष्टाचार वाले शिष्टाचार पर केंद्र का एक और प्रहार
विनोबा भावे ने एकबार कहा था कि भ्रष्टाचार तो शिष्टाचार हो गया है। जब सभी लोग ऐसा करने लगें तो यह भ्रष्टाचार नहीं शिष्टाचार हो जाता है। भ्रष्टाचार के विरोध को लेकर विनोबा भावे के इस विचार की झलक वर्तमान केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली में साफतौर पर मिलती है, जो किसी कीमत पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने की नीति पर काम कर रही है
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत नियोजित श्रमिकों की उपस्थिति को डिजिटली दर्ज करने को लेकर केंद्र सरकार ने आदेश दिया है। यह उपस्थिति 1 जनवरी, 2023 से दर्ज होगी। सरकार के इस आदेश का मतलब है कि अब मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों की उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज होगी। सरकार के इस फैसले से इस योजना में और अधिक पारदर्शिता आएगी।
सभी कार्यस्थलों के लिए अनिवार्य
जानकारी के लिए बता दूं कि 16 मई, 2022 से उन कार्यस्थलों के लिए ऐप के माध्यम से उपस्थिति दर्ज करना अनिवार्य कर दिया था। हालांकि यह 20 या अधिक श्रमिकों वाले कार्यस्थलों के लिए ही अनिवार्य था। लेकिन केंद्र सरकार के नवीनतम आदेश में यह साफ है कि अब सभी कार्यस्थलों के लिए यह अनिवार्य है। चाहे कर्मचारियों की संख्या कितनी भी हो। मनरेगा के डिजिटल उपस्थिति के माध्यम से केंद्र सरकार ने एक बार फिर भ्रष्टाचार पर बड़ा प्रहार किया है, क्योंकि मनरेगा में कई तरह की शिकायतें समय-समय पर सुनने को मिलती रहती हैं। किसी राज्य में बिना काम किए श्रमिकों के खाते में रकम आ रही थी तो कहीं कोई और मामला था। केंद्र सरकार की इन सब शिकायतों पर नजर थी और यही कारण है कि उसने मनरेगा को लेकर ये बड़ा फैसला लिया। वैसे पिछले आठ साल में देश में भ्रष्टाचार को लेकर केंद्र सरकार का जीरो टॉलरेंस से ये संदेश गया है कि भ्रष्टाचार को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। चलिए समझते हैं आठ साल पहले वर्तमान केंद्र सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर कार्रवाई कहां से शुरू किया और आज मनरेगा के डिजिटल अटेंडेंस के माध्यम से भ्रष्टाचार को लेकर इस सरकार की क्या सोच है।
8 साल पहले और अब
लगभग आठ साल पहले भ्रष्टाचार ने व्यापक स्तर पर जन-जीवन को प्रभावित कर रखा था। नौकरशाही हो या राजनीति, व्यापार हो या समाज या धर्म, यहां तक कि व्यक्तिगत, पारिवारिक जीवन में भी भ्रष्टाचार फैला हुआ था। समस्या यह थी कि जबतक जन-जीवन से भ्रष्टाचार दूर नहीं होता, तबतक न तो देश का विकास हो पा रहा था और न ही व्यक्ति का। 8 साल पहले हर गली-चौराहे पर यही चर्चा आम थी कि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए लेकिन जब सरकार के मंत्रियों पर ही घोटाले के आरोप लगे हों तो ऐसे में सवाल किससे और सजा किसे और कौन दे। सच्चाई यह थी कि जब सरकारी मशीनरी ही इससे प्रभावित थी तो कानून कोई कारगर उपाय कैसे लागू करता।
2014 में नई सरकार सत्ता में आई और उसने महसूस किया कि भ्रष्टाचार समाज के चरित्र और स्वभाव से जुड़ी हुआ है। इसके लिए सर्वप्रथम समाज का नेतृत्व करनेवाले लोग जैसे नेता, अधिकारी, धर्म गुरुओं को अपने आदर्श चरित्र का उदाहरण जन सामान्य के समक्ष रखना चाहिए। इन लोगों के आचरण का ही अनुकरण समाज के अन्य लोग करते हैं। महात्मा गांधी ने भी जैसा समाज बनाना चाहा, उसके अनुसार पहले स्वयं को बनाया।
कालेधन पर बड़ी कार्रवाई
जब पीए मोदी ने 2014 में केंद्र की सत्ता संभाली और उसके बाद से ही भ्रष्टाचार पर समय-समय पर लगातार प्रहार करते रहे हैं। उन्होंने सत्ता संभालते ही कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार और कालेधन पर कार्रवाई करेगी। पीएम की ये बातें तब लोगों को समझ में आने लगीं जब उन्होंने भ्रष्टाचार के दीमक को खत्म करने के लिए कई बड़े और कड़े कदम उठाए, जिन्में नोटबंदी प्रमुख था। और सबसे बड़ी बात कि पीएम के इस निर्णय का जनता ने दिल से स्वागत किया।
यूपीआई से डिजिटल पेमेंट्स में क्रांति
नोटबंदी के बाद पीएम ने यूपीआई से डिजिटल पेमेंट्स की बात कही, जिससे अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता आई। कोविड महामारी के बाद इसको अपनाने की में गति में और ज्यादा तेजी आई। जेफरीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में देश में खुदरा डिजिटल भुगतानों में यूपीआई की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। बड़ी बात यह है कि डेबिट व क्रेडिट कार्ड से होने वाले लेन-देन की तुलना में इससे की गई लेनदेन लगभग 4.5 गुना अधिक है। आज भारत में ही नहीं, विश्व के कई देशों में इस पेमेंट सिस्टम का उपयोग हो रहा है, जो देश को गौरवान्वित कर रहा है।
भ्रष्टाचारियों पर गौरवगान बर्दाश्त नहीं
पीएम ने कहा था कि हमने देखा है, जेल की सजा होने के बावजूद भी, भ्रष्टाचार साबित होने के बावजूद भी, कई बार भ्रष्टाचारियों का गौरवगान किया जाता है। ईमानदारी का ठेका लेकर घूमने वाले लोग, भ्रष्टाचारी के साथ फोटो खिंचवाते हैं। उन्हें शर्म नहीं आती है। ये स्थिति भारतीय समाज के लिए ठीक नहीं है। भ्रष्टाचार को लेकर पीएम की दो टूक से साफ है कि पीएम देश के विकास के लिए क्या सोचते हैं इस मसले पर।
सोच बदली कि रिश्वत के बिना भी काम संभव
भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने वाली संस्थाओं को वर्तमान केंद्र सरकार ने बिना किसी हस्तक्षेप के काम करने की छूट दी। मंत्री हों या अफसर या फिर जनता, केंद्र सरकार की कार्य प्रणाली से सभी को यह मैसेज गया कि भ्रष्टाचार किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पीएम का साफ संदेश है कि भ्रष्टाचार करने वाला चाहे कितना ही बड़ा आदमी हो, उसके खिलाफ कार्रवाई करनी है। यही कारण है कि पहले भी और हाल के दिनों में भी भ्रष्टाचार को अंजाम देनेवाले लोगों पर प्रवर्तन निदेशालय अर्थात ED ने बड़ी कार्रवाई शुरू की। सरकार के इस अडिग फैसले का असर यह हुआ कि भ्रष्टाचारी गलत काम करने से डरने लगे और आम आदमी में सरकार को लेकर यह मैसेज गया कि उनका काम बिना रिश्वत दिए भी हो सकता है।
लालकिले से ऐलान
पीएम मोदी ने इस बार 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से एक निर्णायक ऐलान किया। वह ऐलान था भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ एक निर्णायक जंग का। पीएम मोदी देश के विकास के लिए भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, परिवारवाद, जनता के पैसे की लूट, आतंकवाद को खतरनाक मानते हैं। यही कारण है कि सीमा पार की जनता और हुक्मरान भी पीएम की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीतियों की सराहना कर रहे हैं। पीएम जब कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि जिन्होंने देश को लूटा है, उनको लौटाना भी पड़े, हम इसकी कोशिश कर रहे हैं तो देश को लेकर प्रधान सेवक की चिंता साफ झलकती है। पीएम मोदी ने लोगों से अपील की, ‘मेरे 130 करोड़ देशवासी आप मुझे आशीर्वाद दीजिए, आप मेरा साथ दीजिए, मैं आज आपसे साथ मांगने आया हूं, आपका सहयोग मांगने आया हूं, ताकि मैं इस लड़ाई को लड़ सकूं और इस लड़ाई को देश जीत पाए।’ पीएम का ये आह्वान देश के विकास और उसके भविष्य के लिए बहुत मायने रखता है।
गलत हाथों में जाने से 20 लाख करोड़ बचा
पिछले आठ वर्षों में DBT अर्थात प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के द्वारा मोबाइल और आधार सहित अन्य आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए 20 लाख करोड़ रुपये को गलत हाथों में जाने से बचाया गया। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के अंतर्गत वार्षिक नकद राशि (2019-20) में 178.13 करोड़ रुपये जारी किया गया। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के उद्देश्य हैं- अधिक मात्रा में खाद्यान्नों की वास्तविक आवाजाही को कम करना, आहार में विविधता को बढ़ाना, लीकेज को कम करना, अपनी खपत का चुनाव करने के लिए लाभार्थियों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना, बेहतर लक्ष्य की सुविधा प्रदान करना, वित्तीय समावेशन को बढ़ाना।
भ्रष्टाचारी अफसरों पर गिरी गाज