तमिल लोकनृत्य थापट्टम एवं सिलम्बट्टम के कलाकारों के प्रदर्शन ने दर्शकों को किया रोमांचित
वाराणसी : काशी तमिल संगमम के तहत आयोजित सांस्कृतिक संध्या में विनायक आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विनायक सोनी फायरवर्क्स ग्रुप के अध्यक्ष गणेशन पंजुराजन रहे। काशी औऱ तमिनलाडु के प्राचीन संबंधों की चर्चा करते हुए उन्होंने शिवकाशी के नाम के पीछे की पौराणिक कथा बताई। उन्होंने कहा कि जब पराक्रम पांड्यन् काशी से लेकर शिवलिंग तेनकाशी जा रहे थे, तभी उन्हें रास्ते में एक गाय ने शिवलिंग की पूजा करने हेतु रोक दिया। इस कारण वह स्थान शिवकाशी के नाम से प्रचलित हुआ। वर्तमान में तमिलनाडु का शिवकाशी जिला अपनी औद्योगिक गतिविधियों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देता है।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में थंजावूर के राजकुमार ‘श्री एस. भाभाजी राजा भोंसले’ उपस्थित थे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारा भारत देश विविधताओं से भरा है। काशी तमिल संगमम जैसे आयोजन से ऐसी कलाओं तथा कलाकारों को एक मंच मिला है जो पहले उपेक्षित थे।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों में सर्वप्रथम प्रस्तुति स्थानीय कलाकारों ने दी जिनकी शुरुआत डॉ. शाभित नाहर, डॉ. अंजली शर्मा और छात्रों के द्वारा की गई। डॉ. शाभित नाहर ने ‘राग चारुकेसी’ में मधुर सितार वादन किया। इसके पश्चात् प्रो. रिचा कुमार और छात्राओं ने लोकगीत की प्रस्तुति दी, जिसमें प्रमुख रूप से पूर्वांचल में विवाहोत्सव में गाया जाने वाला गीत “गारी राम जी से पूछे जनकपुर के नारी” सुनाया। स्थानीय कलाकारों में अंतिम प्रस्तुति संगीत एवं मंच कला संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शोध छात्राओं शिवानी चौरसिया, अंजली गुप्ता एवं राजश्री ने दी। इनके द्वारा बनारस की पारंपरिक दादरा ‘मोहे मारे नजरिया सांवरिया’ की प्रस्तुति हुई।
इसके बाद तमिलनाडु से आए कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां दी गईं जिनमें प्रथम प्रस्तुति थिरूपुग्गा गीत की हुई। यह तमिल भक्ति संगीत है जिसकी रचना महाकवि ‘अरनागिरी नाथर’ द्वारा 15वीं शती में हुई थी। यह रचना भगवान कार्तिकेय पर आधारित है। इसके प्रस्तुतकर्ता श्री ई. एन. मूर्ति एवं श्रीमती चित्रा मूर्ति थीं। श्री मूर्ति जम्मू कश्मीर के पूर्व आईएएस अधिकारी हैं।
तत्पश्चात् नादस्वरम् वादन एम. कार्तिकेयन द्वारा प्रस्तुत किया गया। यह प्रस्तुति “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” की भावना से ओतप्रोत रही।
अगली प्रस्तुति ‘श्री जे. चंद्रू एवं समूह’ द्वारा तमिलनाडु के प्रसिद्ध लोकनृत्य Thappattam एवं Silambattam की हुई। यह अत्यंत ही प्राचीन लोकनृत्य है जिसकी चर्चा ‘तमिल संगम साहित्य’ में मिलती है। इसे आदिम मानव समाजों ने अपने एकत्र होने, अपने समूह को खतरों से आगाह करने और जानवरों से खुद को बचाने के लिए बनाई थी। इसकी शानदार प्रस्तुति से दर्शक रोमांचित हो उठे।
कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति तमिलनाडु के एक लोकगीत के माध्यम से हुई। इस लोकगीत को राजीव गांधी मन्नारगुडी ने प्रस्तुत किया।
श्रृंखला की अगली प्रस्तुति तमिलनाडु के एक लोकनाटक थेरुकुट्टू की प्रस्तुति ‘ Shri K. Parthiban Palacode’ एवं समूह द्वारा दी गई। आज के नाटक में महाभारत के सुप्रसिद्ध चरित्र अर्जुन के बारे में बताया गया। इस नाटक में महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन द्वारा भगवान शिव से आशीर्वाद प्राप्त किए जाने का प्रसंग सुनाया गया।
कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति पुईक्कलपुदुरईअट्टम एवं मईलाट्टम रही। पुईक्कलपुदुरईअट्टम में ‘dummy horse dance’ तथा मईलाट्टम में ‘dummy peacock dance’ को दिखाया गया। यह प्रस्तुति एम. गुरुमूर्ति के निर्देशन में हुई।