शिक्षक को भी एक विद्यार्थी की भाँति सदैव सीखते रहना चाहिए: प्रो0 चक्रवाल
· पुनश्चर्या पाठ्यक्रम कार्यक्रम के समापन पर बोले गुरु घासीदास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 आलोक कुमार चक्रवाल
· यूजीसी-एचआरडीसी द्वारा आयोजित 14 दिवसीय पुनश्चर्या कार्यक्रम सम्पन्न
बी.एच.यू. : यू.जी.सी.-ह्यूमन रिसोर्स डेवलेपमेन्ट सेन्टर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में चल रहे चौदह दिवसीय ‘‘गृष्म कालीन‘‘ बहु-विषयक पुनश्चर्या पाठ्यक्रम (ऑन-लाईन) का समापन समारोह संपन्न हुआ। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल, कुलपति, गुरू धासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छ.ग.) उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. प्रवेश कुमार श्रीवास्तव, निदेशक, मानव संसाधन विकास केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने की। इस द्वी साप्ताहिक तक चले पाठ्यक्रम में देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों से 51 प्रतिभागियों ने ऑन-लाईन प्रणाली से प्रतिभाग किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. आलोक कुमार चक्रवाल जी ने बताया कि मैं स्वयं शिक्षक हूँ और मेरा विश्वास है कि शिक्षक को हमेशा सीखना चाहिए। वह एक अच्छा विद्यार्थी होता है और कुलपति को भी हमेशा कक्षाएँ लेनी चाहिए। एक अध्यापक को शिक्षा की गुणवत्ता का ध्यान रखना चाहिए। हमें शिक्षा में परिवर्तन का अग्रदूत होना है। हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षा का स्तर बेहतर हो। हमें नदी के प्रवाह की तरह होना चाहिये। हम अध्यापकों के पास ज्ञान के सा
गर की कुछ बूदें होती हैं। हमारे सामने पूरा भविष्य है
कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो. प्रवेश कुमार श्रीवास्तव जी ने पाठ्यक्रम की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अध्यापकों का अधिकतर समय युवाओं के साथ गुजरता है। शिक्षकों को विद्यार्थियों के साथ सहज, सरल एवं सरस रहना चाहिए। उन्होंने महामना का संदर्भ लेते हुए कहा कि हम सब महामना की गोद में बैठे हैं एवं हमे अपने संसार को साफ, सुन्दर एवं पवित्र बनाकर रखना चाहिए क्योंकि हमें फिर लौटकर आना है। उन्होंने कहा कि महामना ने पूरब एवं पश्चिम दोनों के सदगुणों को समन्वित कर विश्वविद्यालय की स्थापना का स्वप्न देखा था। इसी कारण उन्होंने कला एवं अभियांत्रिकीय कीं शुरूआत विश्वविद्यालय में सबसे पहले की। उनका विचार था कि भारतीयों को अपनी संस्कृति के साथ-साथ नये युग की अभियांत्रिकीय को भी अपनाना होगा तभी देश एवं समाज का उत्थान संभव है। आज प्रसन्नता, कृतज्ञता एवं अह्लाद सिर्फ शब्द बनकर रह गये हैं अपने दैनिक जीवन में इनका नितान्त अभाव हो गया हैै। उन्होंने कहा कि धर्म और ज्ञान वह है जो आचरण में आए एवं तभी हम संम्पूर्णता की तरफ अग्रसर हो सकते हैं।
इस दो दिवसीय पाठ्यक्रम में अपने सुखद अनुभवों को डॉ0 आरती चौघरी एवं डॉ0 अजीत प्रताप सिंह ने साझा किया। पाठ्यक्रम कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अंशुल शर्मा, संगणक विज्ञान विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं समन्वयक डॉ. अर्चना शर्मा, प्राचीन भारतीय इतिहास विभाग, का.हि.वि.वि. ने धन्यवाद ज्ञापन कर कार्यक्रम को सफल बनाया।