



दर्जनों मंदिरों से श्रीराम नगरी में निकाली गई रथ यात्रा
सैकड़ों बर्षो से रामकचहरी मंदिर से निकाली जाती है रथयात्रा: महंत शशिकांत दास
अयोध्या। भगवान श्री राम की जन्मस्थली अयोध्या में हर्षोल्लास के साथ निकली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा। प्रतिवर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को अयोध्या के दर्जनों मंदिर भगवान जगन्नाथ की यात्रा निकलती है। अयोध्या के विभिन्न मार्गो से होते हुए यात्रा मां सर जी के पावन तट पर पहुंचती है जहां विधिवत पूजन अर्चन किया जाता है उसके बाद यात्रा अपने अपने स्थान पर पुनः पहुंचती है। यात्रा में भगवान के स्वरूप के साथ भक्त भी शामिल होते हैं।
रथ यात्रा का जगह जगह स्वागत और पूजन भी किया जाता है।
रामकोट मोहल्ले में स्थित श्री राम जन्मभूमि परिसर से सटे राम कचहरी मंदिर से पीठाधीश्वर महंत शशिकांत दास जी महाराज के संयोजन में रथ यात्रा निकाली गई जिसमें भगवान के विग्रह के साथ सैकड़ों की संख्या में संत महंत एवं भक्तगण शामिल हुए। उन्होंने बताया कि मंदिर से भव्यता पूर्वक रथ यात्रा निकाली गई। इससे पहले मंदिर में विराजमान भगवान जगन्नाथ की पूजा-अर्चना की गई। उन्होंने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
अयोध्या के प्राचीन जगन्नाथ मंदिर में रथयात्रा महोत्सव की परंपरा का निर्वहन भव्यता पूर्वक किया गया और रथयात्रा निकाली गई। वही श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष मणिराम छावनी के महंत नृत्य गोपाल दास जी महाराज के संयोजन में मणिराम दास स्वामी से हर्षोल्लास के साथ रथ यात्रा निकाली गई। चक्रवर्ती सम्राट दशरथ राजमहल बड़ा स्थान के महंत बिंदुगद्याचार्य स्वामी देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महाराज के संयोजन में हर्षोल्लास के साथ रथ यात्रा निकाली गई। राम हर्षण कुंज के साथ अयोध्या के अन्य मंदिरों से भी रथ यात्रा निकाली गई जिसकी शोभा देखते ही बनती थी।
जगन्नाथ मंदिर के महंत राघव दास ने बताया कि परंपरा है कि यदि जगन्नाथ भगवान को रथ पर आरूढ़ नहीं कराया जाएगा तो उनकी पुर्नप्रतिष्ठा करनी पड़ेगी, जो कि संभव नहीं है।इसलिए मंदिर परिसर से रथपर भगवान जगन्नाथ को आरूढ़ कर गाजे बाजे के साथ रथयात्रा निकाली गई। जो परंपरागत मार्गों से होते हुए सरयू तट पहुंची। जहां पूजन अर्चन के बाद वापस मंदिर पहुंचकर रथ यात्रा का समापन हुआ।देर रात जगन्नाथ भगवान की फूल बंगला झांकी भी सजाई गई।
इससे पूर्व मंदिर में भगवान जगन्नाथ का औषधि, दूध, दही, घी व गंगाजल से अभिषेक किया गया।महंत राघव दास ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के प्राण स्वरूप स्थापित भगवान शालिग्राम को भी भगवान की नाभि से निकाल करके स्नान कराया गया। जिला प्रशासन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए थे।
प्रवेश सम्बधित समस्त जानकारी विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है।
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