Friday, April 19, 2024
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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार : ग्रामीण भारत हो रहा है और अधिक सशक्त

दिल्ली । महात्मा गांधी नरेगा का साथ पाकर आज रूरल इंडिया यानि ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल गई है। केंद्र सरकार ने इसके माध्यम से करोड़ों इच्छुक ग्रामीण कामगारों को सुनिश्चित रोजगार मुहैया कराया है। आज महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत देशभर के 29 राज्यों व 2 केंद्र शासित प्रदेशों के 6,50,244 गावों, 2,62,380 ग्राम पंचायतों, 686 जिलों और 6,888 ब्लॉक को कवर किया जा रहा है।

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2022-23 का बजट 73,000 करोड़

इस बार केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी नरेगा का 2022-23 का बजट 73,000 करोड़ रुपए रखा है। वहीं वर्ष 2013-14 में केंद्र सरकार द्वारा योजना के लिए 33,000 करोड़ रुपए ही प्रदान किए गए थे, जबकि जब भी, अतिरिक्त फंड की आवश्यकता होती है तो वित्त मंत्रालय से फंड जारी किए जाने का अनुरोध किया जा सकता है। इससे साफ होता है कि वर्तमान में पीएम मोदी के नेतृत्व में महात्मा गांधी नरेगा अधिनियम ग्रामीण कामगारों को अधिक रोजगार मुहैया कराने में सक्षम रहा है।

क्या है महात्मा गांधी नरेगा ?

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (महात्मा गांधी नरेगा) एक ग्रामीण क्षेत्र में एक परिवार द्वारा की गई मांग के विरुद्ध कम से कम 100 दिनों के मजदूरी रोजगार की गारंटी प्रदान करता है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक मांग प्रेरित अधिनियम है। यानि यह कानून कहता है कि हितग्राही के काम मांगने पर 15 दिनों के भीतर रोजगार दिया जाएगा। नहीं दिया तो सोलहवें दिन से बेरोजगारी भत्ता पाने का कानूनी अधिकार होगा। मनरेगा भारत के पर्यावरण को बेहतर करने के लिए भी एक बेहद महत्वपूर्ण कार्यक्रम रहा है और पानी के विकराल होते संकट के असर को कम करने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसके तहत कामगारों के लिए ग्राम सभा और पंचायत खुद तय करेंगी कि उनसे कौन से काम कराए जाने हैं जो गांव के विकास में सहयोगी बनें। उनसे क्या लाभ होगा और वे ही कामों का सोशल ऑडिट करने के लिए भी अधिकृत हैं।

गौरतलब हो, 2021-22 में इसके द्वारा लाभार्थियों द्वारा की गई मांग के अनुसार 310.01 करोड़ से अधिक व्यक्ति-दिवसों का सृजन किया जा चुका है। इस योजना के अंतर्गत 30.12 करोड़ कामगार कार्य कर रहे हैं। वहीं 15.81 करोड़ को जॉब कार्ड इश्यु किए जा चुके हैं।

सर्जित मानव श्रम दिवस

वीत्तिय वर्ष 2006-07 से 2013-14 में 1660 करोड़ का सर्जित मानव श्रम दिवस रहा। वहीं वित्तीय वर्ष 2014-15 से 2021-22 के बीच 2,092 करोड़ रुपए सर्जित मानव श्रम दिवस रहा। केवल इतना ही नहीं 2014 से अब तक कुल 592.32 लाख कार्य भी पूरे हुए हैं और 6.13 करोड़ परिसंपत्तियां भी सृजित की जा चुकी हैं।

2021-22 के अंतर्गत 15.3 करोड़ एक्टिव वर्कर

2021-22 में 15.3 करोड़ सक्रीय कामगारों ने महात्मा गांधी नरेगा के अंतर्गत कार्य किया। इससे उन्हें इस योजना का लाभ मिला और रोजगार के साथ अपने गांव में ही आजीविका कमाने का अवसर प्राप्त हुआ।

कौन होंगे बेरोजगारी भत्ते के पात्र ?

बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान उस लाभार्थी के लिए लागू है, जिसने काम की मांग की है और काम की मांग की तारीख से 15 दिनों के भीतर काम की पेशकश नहीं की जा सकती है। कार्य की अन्य सभी मांगें जहां लाभार्थी ने चालू वित्तीय वर्ष में 100 दिन पहले ही पूरे कर लिए हैं या लाभार्थी जिसने काम की मांग की है लेकिन काम की मांग की तारीख से 15 दिन पहले उसकी मृत्यु हो गई है, तो वह बेरोजगारी भत्ते के लिए पात्र नहीं होगा।

2021-22 में डीबीटी लेनदेन 46.02 करोड़

बताना चाहेंगे कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में साल 2021-22 के दौरान डीबीटी लेनदेन 46.02 करोड़ रुपए रहा है। वहीं इस योजना से लाभित परिवारों की संख्या कुल 6.84 करोड़ रही। यह तमाम आंकड़े दर्शाते हैं कि केंद्र सरकार गांव में लोगों को 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार किस प्रकार मुहैया कराती है।

आपको याद होगा कोविड संकट के दौरान जब बहुत से लोगों को शहरों से काम छोड़कर अपने गांव वापस लौटना पड़ा था तो ऐसे ग्रामीणों की मदद के लिए भी केंद्र सरकार ने जिम्मा संभाला था। जी हां, उस दौरान केंद्र सरकार ने इन ग्रामीणों को उनके गांव में या गांव के नजदीक ही हो रहे सरकारी निर्माण कार्यों में रोजगार उपलब्ध कराया था। केवल इतना ही केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी नरेगा के माध्यम से देश में महिलाओं के सशक्तिकरण में भी बड़ी भूमिका अदा की। अब जब लोगों को अपने ही गांवों में कार्य मिल रहा है तो इससे ग्रामीणों का शहरों की ओर होने वाले पलायन पर घट रहा है।

उद्देश्य

– ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष के दौरान 100 दिन का गारंटीशुदा रोजगार उपलब्ध कराना है, जिससे व्यस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करने को तैयार है।

– ग्रामीण इलाकों में स्थाई परिसम्पत्तियों का निर्माण करना, जिससे आजीविका में वृद्धि हो।

– गांवों के जंगल, जल एवं पर्यावरण की रक्षा करना।

– महिलाओं का सशक्तिकरण।

– गांवों से शहरों की ओर होने वाले पलायन पर अंकुश लगाना।

– सामाजिक समरसता एवं समानता सुनिश्चित करना।

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