बीएचयू । कला-इतिहास विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का कला-विरासत संरक्षण, प्रवर्धन एवं संप्रेषण में विशेष योगदान रहा है। संस्थापक विभागाध्यक्ष प्रो0 वासुदेवशरण अग्रवाल द्वारा दशाये मार्गो का अनुपालन करते हुए विभाग ने मूर्त व अमूर्त विरासत के प्रवर्धन में एक अमिट छाप छोड़ी है। विभिन्न संग्रहालयों की स्थापना व संग्रहित कलावशेषों के प्रलेखन की दृष्टि से वासुदेवशरण अग्रवाल, एस0के0 सरस्वती, आनन्द कृष्ण व विभाग की प्रथम पीएच0डी0 शोधार्थी कपिला वात्स्यायन, परमेश्वरी लाल गुप्त आदि का अमूल्य योगदान रहा है। राष्ट्रीय संग्रहालय, इन्दिरा गॉधी राष्ट्रीय कला केन्द्र व मुद्रा संग्रहालय, नासिक क्रमषः वासुदेवशरण अग्रवाल, कपिला वात्स्यायन व परमेश्री लाल गुप्त द्वारा स्थापित है।
कला-इतिहास विभाग के अमूल्य योगदान के कारण ही प्रवासी भारतीय फ्रैंक सी0 चोकोलिंगो अनुदान देने हेतु प्रेरित हुए। दिनांक 25 व 26 मार्च को चोकोलिंगों विभाग द्वारा स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के साथ विशेष व्याख्यान, पुरातन छात्र समागम का आयोजन महामना सभागार, मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र में किया गया। दिनांक 26 मार्च को प्रथम विशेष व्याख्यान इंदिरा गॉधी राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 रविन्द्र कुमार का रहा जिन्होंने विरासत पर्यटन के सिद्धान्तो की विस्तृत चर्चा की।
अपने विशिष्ट व्याख्यान में श्री0 के0के0 मुहम्मद ने अयोध्या मन्दिर संबंधी पुरातात्विक साक्ष्यों को प्रस्तुत करते हुए वहाँ पहले से ही मन्दिर होने के साक्ष्य प्रस्तुत किए। ज्ञात हो कि श्री के0के0 मुहम्मद ने श्री बी0बी0 लाल के नेतृत्व में 1976-77 में अयोध्या उत्खनन में भाग लिया था। तत्पश्चात बी0आर0 मणि ने उत्खनन का नेतृत्व किया। उत्खनन में बाबरी मस्जिद की नींव से पूर्व बारहवीं सदी के प्राप्त कई ईष्टि का स्तम्भ आधार की भी उन्होंने चर्चा की।
के0के मुहम्मद ने पुरास्थल से प्राप्त नब्बे से भी ज्यादा स्तम्भ आधार, मन्दिर के विविध स्थापत्यकीय अवशेष के साथ आमलक, गर्भगृह में गर्भगृह में प्रतिष्ठापित प्रतिमा से जल निकलने हेतु प्रणाल व बीस पंक्तियों का लेख मन्दिर को इस सर्न्दभ में अहम् माना। प्राप्त सैकड़ो मृण्मूर्तियाँ व मूर्ति अवशेष देवालय होने की पुष्टि करते हैं। नए मन्दिर के निर्माण के समय भी कई मंदिर स्तम्भ प्राप्त हुए। के0के0 मुहम्मद ने पुरातात्विक स्रोतों के साथ ही विविध पारसी व साहित्यिक स्रोतों विशेषकर आइन-ए-अकबरी का उल्लेख किया जिसमें हिन्दू धार्मिक स्थल के रूप में अयोध्या की चर्चा करते हुए बताया कि मार्क्सवादी इतिहासकारों के पूर्वाग्रह व पुरातत्व की नासमझ को विलंब व व्यवधान का कारण माना।
श्री मुहम्मद ने देवालयों के ध्वंसावशेषों से निर्मित विभिन्न मध्यकालीन स्मारकों के भी साक्ष्य प्रस्तुत किए व इतिहास की गलतियों से सीख लेने की बात कहीं। उन्होंने धार्मिक सौहार्द हेतु मुस्लिम भाईयों को खुद जिम्मेदारी लेना होगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय को उन्होंने संतुलित व ऐतिहासिक बताया।सत्र की अध्यक्षता प्रो0 विभा त्रिपाठी ने की। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष प्रो0 अतुल त्रिपाठी ने स्वागत उद्बोधन दिया। संचालन डॉ0 ज्योति रोहिल्ला राणा ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ0 शायजु ने किया। इस अवसर पर अनेक गणमान्य उपस्थित थे।