



Ø बालश्रम से मुक्त हुए किशोरों में विभिन्न प्रकार के बालशोषण तथा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की संभावना को लेकर अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं के दल ने किया अध्ययन
Ø काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रो. राकेश पाण्डेय भारत में रहे अंतरराष्ट्रीय शोध दल के मुख्य शोधकर्ता
Ø भारतीय संदर्भ में अब तक का पहला ऐसा अध्ययन, इससे पहले एशियाई निम्न मध्यम आय वर्ग देशों के संबंध में ऐसा कोई आंकड़ा नहीं था उपलब्ध
Ø अध्ययन ने बताई व्यापक रूप से उपलब्ध ऐसे तरीकों की आवश्यकता जिनसे बाल श्रमिकों को भावनात्मक व मानसिक रूप से बनाया जा सके स्वस्थ
वाराणसी : बाल शोषण वैश्विक स्तर पर एक बड़ी समस्या है। उच्च आय वाले विकसित देशों में किए गए पिछले शोधों से पता चला है कि जिन बच्चों को दुर्व्यवहार (बुरे अनुभवों) का सामना करना पड़ता है, वे ऐसे वयस्कों के रूप में बड़े होते हैं, जिनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं होता। हालांकि, निम्न-मध्यम आय वर्ग वाले एशियाई देशों में इस विषय बहुत कम ही प्रकाशित आंकड़े उपलब्ध हैं, विशेष रूप से उन राष्ट्रों में जहाँ बाल-श्रम प्रचलन में है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, किंग्स कॉलेज, और ब्रुनेल विश्वविद्यालय, लंदन, ब्रिटेन, के शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल द्वारा इस कमी को पूरा करने का प्रयास किया गया है तथा इस बारे में किये गए एक अत्यंत महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक अध्ययन में बेहद चिंताजनक निष्कर्ष सामने आए हैं। इस अध्ययन ने बचपन में होने वाले दुर्व्यवहार (ऐसे अनुभव जिनसे बचपन पर गहरे प्रतिकूल प्रभाव पड़ जाएं) के प्रचलन और उसके प्रकारों का आंकलन किया गया और उनका बालश्रम में शामिल रहे भारतीय किशोरों की वर्तमान मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से साथ संबंध का अध्ययन किया है।
अध्ययन के परिणामों में पाया गया कि इन किशोरों में पारिवार से इतर शारीरिक और भावनात्मक शोषण तथा उत्पीड़न होने का जोखिम रहता है और साथ ही साथ इनमें भय, मानसिक कष्ट, अवसाद, सामान्यीकृत चिंता, गहन दुश्चिंता, आघात के उपरांत तनाव, आचरण संबंधी, प्रतिरोधी उद्दंडता विकार और मादक द्रव्यों के सेवन सहित कई मानसिक विकारों के लक्षण भी पाए जाते हैं।भारत में अध्ययन का नेतृत्व करने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश पाण्डेय ने कहा — अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि बाल-श्रम बचपन के प्रतिकूल एवं कटु अनुभवों की एक विस्तृत श्रंखला से जुड़ा है, जिसमें, दुर्व्यवहार, उपेक्षा और प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष उत्पीड़न इत्यादि शामिल है। प्रो. पाण्डेय ने कहा कि ” भारतीय संदर्भ में यह पहली बार प्रदर्शित किया गया है कि सभी प्रकार के दुर्व्यवहार और शोषणों में भावनात्मक शोषण का मानसिक स्वास्थ्य पर व्यापक असर पड़ता है। साथ ही भावनात्मक शोषण एक ऐसा परनैदानिक कारक है जो विभिन्न प्रकार की मानसिक विकृतियों के उत्पन्न होने के ख़तरे को प्रबल करता है।“
ऑस्ट्रेलियन एंड न्यूज़ीलैंड जर्नल ऑफ़ साइकियाट्री (ANZJP) में प्रकाशित इस शोधपत्र के परिणाम, इन्हीं शोधकर्ताओं द्वारा पूर्व में प्रकाशित उस शोध के समान ही हैं, जिसमें बाल श्रम से मुक्त कराए गए उन नेपाली किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया था, जिन्हें बचपन में दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा था। वर्तमान अध्ययन विशेष रूप से उत्तर भारत में बाल श्रम से मुक्त कराए गए किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर केंद्रित है। वर्ष 2011 में हुई पिछली जनगणना के अनुसार भारत में बाल श्रमिकों की एक बड़ी आबादी (11.72 मिलियन) है, जिसे दोनों कारणों, जिसकी वजह से उन्हें बाल श्रम करना पड़ा और बालश्रम से जुड़े अन्य कारकों के कारण दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का अत्यधिक जोखिम हो सकता है।
ब्रुनेल यूनिवर्सिटी लंदन की प्रोफेसर वीना कुमारी, जिन्होंने पहले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (जहां शोध किया गया) में अध्ययन किया था, ने कहा, “हमने बाल-श्रम में शामिल रहे उत्तर भारतीय किशोरों में पारिवार से इतर शारीरिक और भावनात्मक शोषण का चिंताजनक उच्च प्रसार पाया है। बच्चों को जब वास्तव में स्कूल में होना चाहिए, उस उम्र में उन्हें बालश्रम करने और शोषण का शिकार बनने से रोकने के लिए हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए।“ उन्होंने कहा, “हमें अपने समस्त प्रयासों में शारीरिक शोषण के साथ साथ भावनात्मक शोषण को रोकने पर भी विचार करना चाहिए, जिसमें जन जागरूकता बढ़ाने के लिए ज़मीनी स्तर पर अभियान चलाना और उन बच्चों, विशेष रूप से जो समाज के पिछडे एवं वंचित तबके से हैं, के साथ दुर्व्यवहार एवं उनके शोषण को कम करने का प्रयास करना चाहिए”।प्रो. राकेश पाण्डेय ने कहा, “बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर भावनात्मक दुर्व्यवहार के अधिक हानिकारक प्रभावों का हमारा अवलोकन बाल श्रमिकों के भावनात्मक घावों को भरने की व्यवस्था और आसानी से दिये जा सकने वाले व्यापक रूप से सुलभ मनोवैज्ञानिक उपचारों व मनोचिकित्सा पद्धतियों को विकसित करने के लिए त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता रेखांकित करता है”।
शोधकर्ता वर्तमान में उन प्रक्रियाओं की पहचान करने के लिए आगे के शोध में जुटे हैं जिनके माध्यम से भावनात्मक दुर्व्यवहार के कारण मानसिक विकारों व मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं। इस प्रकार के शोध के परिणाम मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं पर बाल-दुर्व्यवहार के नकारात्मक प्रभाव को समाप्त करने के लिए नवीन या अधिक प्रभावशाली मनोवैज्ञानिक उपचारों व मनोचिकित्सा पद्धतियों का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
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