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बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का प्रमुख त्यौहार बुद्ध पूर्णिमा
अयोध्या/लखनऊ। बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। यह बैसाख माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था, इसी दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और इसी दिन उनका महानिर्वाण भी हुआ था। 563 ई.पू. बैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध का जन्म लुंबिनी, शाक्य राज्य (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही 483 ई. पू. में 80 वर्ष की आयु में ‘कुशनारा‘ में में उनका महापरिनिर्वाण हुआ था।
वर्तमान समय का कुशीनगर ही उस समय ‘कुशनारा‘ था। इस वर्ष 2022 में बुद्ध पूर्णिमा 16 मई को है भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधि) और महापरिनिर्वाण ये तीनों वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 180 करोड़ से अधिक लोग है तथा इसे धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है।
बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है। यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है जो विहारों में पूजा-अर्चना करने वे श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है।

इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) 6.1 मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी। विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है। श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को श्वेसाकश् उत्सव के रूप में मनाते हैं जो ‘वैशाख‘ शब्द का अपभ्रंश है। इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं।
विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं। वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियों को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें। वर्ष 2009 में बुद्ध पूर्णिमा की तिथि 9 मई थी। भारत के अलावा कुछ अन्य देशों में यह 8 मई को भी मनाया गया। थाईलैंड के महानिकाय और धम्मयुतिका मतों ने 8 और श्रीलंका में भी 8 मई को मनाया गया। जबकि सिंगापुर में 9 मई को मनाया गया।
गृहत्याग
एक दिन महात्मा बुद्ध को कपिलवस्तु की सैर की इच्छा हुई और वे अपने सारथी को साथ लेकर सैर पर निकले। मार्ग में चार दृश्यों को देखकर घर त्याग कर सन्यास लेने का प्रण लिया, लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 15 के श्लोक 1 से 4 में बताए गए तत्वदर्शी संत न मिलने से उनका जीवन व्यर्थ ही गया और पूर्ण मोक्ष से वंचित रहे। हर साल की तरह इस साल भी बुद्ध पूर्णिमा का त्योहार आ रहा है, जो कि इस बार 16 मई सोमवार के दिन मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। जहां बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बौद्ध अनुयायियों के लिए खास महत्व रखता है, तो वहीं हिंदुओं के लिए भी इस दिन की अलग मान्यता है। वहीं, मान्यता इस बात की भी है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था और उन्होंने कठिन साधना की जिसके बाद उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति भी हुई थी। लेकिन क्या आप इस दिन के इतिहास और इस दिन को मनाने के पीछे के उद्धेश्य के बारे में जानते हैं? शायद नहीं, तो चलिए जानते हैं।
इसलिए मनाते हैं बुद्ध पूर्णिमा
दरअसल, जब भगवान बुद्ध ने अपने जीवन में हिंसा, पाप और मृत्यु के बारे में जाना, तब से उन्होंने मोह और माया को त्याग दिया। ऐसे में उन्होंने अपने परिवार को छोड़कर सभी जिम्मेदारियों से मुक्ति ले ली, और खुद सत्य की खोज में निकल पड़े। इसके बाद बुद्ध को सत्य का ज्ञान भी हुआ। वहीं, वैशाख पूर्णिमा की तिथि का भगवान बुद्ध के जीवन की प्रमुख घटनाओं से विशेष संबंध है। इसी वजह से हर साल वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाई जाती है।
ये है इतिहास
20वीं दी से पहले तक बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक बौद्ध अवकाश का दर्जा प्राप्त नहीं था। लेकिन सन 1950 में श्रीलंका में विश्व बौद्ध सभा का आयोजन किया गया और ये आयोजन बौद्ध धर्म की चर्चा करने के लिए किया गया था। इसके बाद से ही इस सभा में बुद्ध पूर्णिमा को आधिकारिक अवकाश बनाने का फैसला हुआ। वहीं, इस दिन को भगवान बुद्ध के जन्मदिन के सम्मान में मानाया जाता है।
ऐसे हुई बुद्धत्व की प्राप्ति
हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बुद्ध जब महज 29 साल के थे, तब उन्होंने संन्यास धारण कर लिया था और फिर उन्होंने बोधगया में पीपल के पेड़ के नीचे 6 साल तक कठिन तप किया था। वो बोधिवृक्ष बिहार के गया जिले में आज भी स्थित है। भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। वहीं, 483 ईसा पूर्व वैशाख पूर्णिमा के दिन ही भगवान बुद्ध पंचतत्व में विलीन हुए थे।
भारत के अलावा इन देशों में मनाया जाता है ये दिन
भारत के अलावा विदेशों में भी सैकड़ों सालों से बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। इसमें कंबोडिया, नेपाल, जापान, चीन, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, वियतनाम, थाईलैंड आदि कई देश शामिल हैं, जो इस दिन बुद्ध जयंती मनाते हैं।
गौतम बुद्व का जन्म, गृहत्याग, ज्ञान प्राप्त, प्रथम प्रवचन एवं शरीर का त्याग/परिनिर्वाण पूर्णिमा को हुआ था पूर्णिमा को आज से लगभग 2500 वर्ष पूर्व हुआ था इसलिए गौतम बुद्व को भगवान गौतम बुद्व एवं पूर्ण ब्रहम भी कहा जाता है।
‘अहम् ब्रहमाश्मि‘ एवं उपनिषद के तथ्य की साक्षात व्याख्या भगवान विष्णु के 23वें अवसर श्री गौतमबुद्व ने किया था। श्री बुद्व ने इसी को प्रकाशित करते हुये कहा कि ‘आपो दीपो भव‘ अर्थात स्वयं को अपना दीपक बनने का संदेश दिया था, क्योंकि सभी ने एक प्रकाश पुंज है जो जीवन को चलाता है।
गौतम बुद्व को तथागत कहा जाता है जो जीवन के सभी तथ्य को जानता है वही तथागत होता है। अर्थात जीवन में दुःख है इस दुःख को समाप्त करना ही मोक्ष या परिनिर्वाण है।
सभी को गौतम पूर्णिमा, सिहार्थ पूर्णिमा एवं बुद्व पूर्णिमा की हार्दिक बधाई

लेखकः डा0 मुरली धर सिंह (डा0 मुरली तथागत)
MSC, LLB (PCS) विद्यावाचस्पति (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)
उप निदेशक सूचना, अयोध्या मण्डल एवं प्रभारी मा0 मुख्यमंत्री मीडिया सेन्टर लोकभवन लखनऊ
ईमेल-thmurli64@gmail.com
मो0 9453005405, 7080510637
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