



गो काश्त : गोबर से लकड़ी और ईंटें बनाने वाली मशीन बदल रही है लाखों जिंदगियां
केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया “गो काश्त” अभियान रंग ला रहा है। इस अभियान के तहत गोबर को लकड़ी और ईंटें बनाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे किसानों, महिलाओं और गौशाला चलाने वाले लोगों के जीवन में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी विकास मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने 6 मई 2022 को प्रोजेक्ट अर्थ के तहत आईआईटी दिल्ली के छात्रों को “गो काश्त” मशीन सौंपी।
क्या है “गो काश्त” अभियान ?
“गो काश्त” अभियान एक ऐसा अभियान है, जिसके माध्यम से गोबर के द्वारा मशीनों के सहारे लकड़ी और ईंटें बनाई जा सकती है। “गो काश्त” मशीन गोबर से लकड़ी बनाने के अलावा और भी कई कामों में इस्तेमाल की जा सकती है। इसके द्वारा खेतों में पड़ी पराली, गेहूं का भूसा, सरसों की तुडी आदि पड़े वेस्ट मटेरियल तैयार कर आमदनी कमाई जा सकती है। इन वेस्ट मटेरियल से किसान अपनी पसंद से मशीन में डाई लगाकर गोल चकोर व आवश्यकता अनुसार साइज की लकड़ी बना सकते हैं।
किसानों की आमदनी में हो रही है बढ़ोतरी
इस मशीन के न होने से पहले किसानों और पशुपालकों को गोबर के निष्पादन के लिए समय और पैसे दोनों खर्च करने पड़ते थे लेकिन इस मशीन के आ जाने के बाद बेकार पड़ा गोबर उपयोगी साबित हो रहा है। गौशालाओं में काम करने वाले मजदूरों और आसपास के किसानों को यह मशीन रोजगार मुहैया करवा रही है। पहले जहां गोबर का इस्तेमाल सिर्फ खाद बनाने के लिए किया जाता था, वहीं अब अन्य चीजों के लिए भी किया जा रहा है। महिलाएं जहां गोबर के उपले दीवारों और अन्य जगहों पर लगाती रहती थी इस मशीन के आ जाने से उन्हें बहुत सहूलियत मिली है।
प्रतिदिन 3,000 किलो गोबर का निष्पादन
प्रत्येक मशीन की सहायता से प्रतिदिन 3,000 किलो गोबर बड़े आसानी से निष्पादन किया जा सकता है। इससे 1,500 किलो गोबर के लट्ठे या लकड़ी का उत्पादन किया जा सकता है, जिनका इस्तेमाल 5 से 7 शवों का दाह-संस्कार करने के लिए भी किया जा सकता है। इससे दाह संस्कार के लिए काटे जाने वाले पेड़ों को भी बचाया जा सकता है जो आज पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है।
गौशाला और “गो काश्त” अभियान पर लगातार हो रहा है काम
केंद्रीय मंत्री ने इस दौरान कहा कि मंत्रालय गौशालाओं को टिकाऊ बनाने के लिए नवाचार में ऐसे प्रयासों को निरंतर प्रोत्साहित करता आ रहा है जिससे गौशालाओं को चलाने वाले लोगों को दिक्कतें न हो। उन्होंने यह भी कहा कि इस मशीन के आ जाने से दूध न देने वाली गाय भी उतनी ही महत्वपूर्ण साबित हो रही है जितना दूध देने वाली गाय है क्योंकि इन गायों के गोबर से आर्थिक लाभ हो रहा है।
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